भू-गर्भ जल का हो रहा दोहन, पीलीभीत में साठा धान के उत्पादन पर लगा प्रतिबंध

भू-गर्भ जल का हो रहा दोहन, पीलीभीत में साठा धान के उत्पादन पर लगा प्रतिबंध

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पीलीभीत, अमृत विचार: पीलीभीत न्यूज, उत्तर प्रदेश न्यूज,  ग्रीष्मकालीन ,Pilibhit News, Uttar Pradesh News, Summerसाठा धान के उत्पादन पर प्रतिबंध लगाया गया है। हालांकि इससे पूर्व भी साठा धान पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है, बावजूद इसके दुष्परिणामों के अनभिज्ञ किसान इसका उत्पादन करते आ रहे हैं। इधर अब कृषि विभाग द्वारा इसके उत्पादन पर प्रतिबंध लगाया गया है। उप कृषि निदेशक ने अधीनस्थों को किसानों को इसके दुष्परिणामों के प्रति जागरूक करने और साठा धान की जगह अन्य फसलों के उत्पादन के प्रति प्रोत्साहित करने के निर्देश दिए हैं।

कृषि क्षेत्र में अग्रणी जिले में बड़े पैमाने पर गेहूं, धान और गन्ने की पैदावार होती है। इसके साथ ही  कुछ किसानों द्वारा फरवरी में धान की नर्सरी डालकर ग्रीष्मकालीन साठा (चाइनीज धान) की खेती की जाती है।  विशेषज्ञों के मुताबिक साठा धान की फसल में उर्वरकों, कृषि रक्षा रसायनों की अधिकता तो होती ही है, चौथे-पांचवें दिन सिंचाई के लिए पानी की भी जरूरत होती है। 

मृदा उर्वरता को संरक्षित रखने के लिए साठा धान की खेती भूमि एवं पर्यावरण के लिहाज से अनुकूल नहीं है। इधर साठा धान के लगाने से भू-गर्भ जल स्तर के  गिरने एवं पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्परिणामों को दृष्टिगत रखते हुए कृषि विभाग द्वारा जिले में साठा धान की खेती को प्रतिबंधित कर दिया है। उप कृषि निदेशक संतोष कुमार सविता ने अधीनस्थों को किसानों को जागरूक करने तथा साठा धान के स्थान पर कम उर्वरक एवं कम पानी वाली दलहनी फसलें और सब्जी आदि की खेती के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के निर्देश दिए हैं।

छह हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन पर होती है साठा धान की खेती
तराई के इस जिले में भूगर्भ जल का स्तर आसपास के अन्य जिलों के अपेक्षा काफी बेहतर है, मगर, यहां जिस रफ्तार से जल दोहन हो रहा है, उससे कुछ साल बाद यहां भी वहीं हालात हो सकते हैं। इसकी एक वजह साठा धान का उत्पादन भी है।

एक अनुमान के मुताबिक जिले में करीब छह हजार हेक्टेयर में साठा धान की खेती होती है।  इस फसल के उत्पादन से किसानों को त्वरित लाभ तो दिखाई दे रहा है, लेकिन इसके दूरगामी परिणामों से अनभिज्ञ किसान इसके उत्पादन पर जोर देते आ रहे हैं।

साठा धान का उत्पादन बड़ी वजह
जिले में करीब एक दशक पूर्व कुछ बंगाली विस्थापितों ने साठा धान की पैदावार शुरू की थी। कम लागत देख तराई के सिख फार्मरों ने भी इसकी पैदावार करनी शुरू कर दी। अब इसका रकबा साल दर साल बढ़ता जा रहा है।

मुख्य धान की फसल से एक एकड़ में करीब 20 क्विंटल, जबकि साठा धान करीब 38 क्विंटल पैदा होता है, लेकिन यह मुनाफा अगले दस सालों में काफी महंगा साबित हो सकता है।  विशेषज्ञों के मुताबिक साठा फसल में हर तीसरे दिन पानी की खपत होने से भूगर्भ जल का खासा दोहन होता है।

भूगर्भ जल के अत्याधिक दोहन एवं पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्परिणामों के जिले में साठा धान का उत्पादन पूर्णतया प्रतिबंधित किया गया है। किसानों से अपील है कि वे साठा धान के स्थान दलहनी एवं सब्जी फसलों का उत्पादन करें ताकि भूमि की उर्वराशक्ति बरकरार रह सके--- संतोष कुमार सविता,  उपकृषि निदेशक।

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