एक वैश्विक चुनौती

एक वैश्विक चुनौती

आर्थिक अनिश्चितता, जलवायु संकट और क्षेत्रीय संघर्ष जैसे कई वजहों से वैश्विक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य खराब हुआ है। आर्थिक अनिश्चितता भी मानसिक विकार की व्यापकता से जुड़ी हुई है। कहा जा सकता है कि मानसिक विकार न केवल व्यक्तिगत चुनौतियों के रूप में, बल्कि वैश्विक चुनौतियों के रूप में भी पहचाने जाते हैं। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को ठीक ढंग से हल न किए जाने के कारण अर्थव्यवस्था को भी काफी नुकसान का सामना करना पड़ता है। इससे न केवल देश की मानव पूंजी को नुकसान होता है बल्कि प्रभावित व्यक्ति की आर्थिक स्थिति भी खराब हो जाती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य विकारों का सर्वाधिक प्रभाव युवाओं पर पड़ता है। चूंकि भारत की अधिकांश जनसंख्या युवा है इसलिए यह एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आता है। डब्लयूएचओ के अनुसार, तकरीबन 7.5 प्रतिशत भारतीय किसी-न-किसी रूप में मानसिक विकार से ग्रस्त हैं। इससे सकल घरेलू उत्पाद में हानि हो सकती है। भारत में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियां कम नहीं हैं। मेंटल स्टेट ऑफ इंडिया -2024 रिपोर्ट के मुताबिक देश में वर्ष 2020 की तुलना में वर्ष 2023 में लोगों का मानसिक स्वास्थ्य अधिक प्रभावित हुआ है यानी इस दौरान मानसिक विकार की समस्या बढ़ी है।

देश में मानसिक स्वास्थ्य पर कुल सरकारी स्वास्थ्य व्यय का सिर्फ़ 1.3 प्रतिशत खर्च होता है। हर दस लाख आबादी पर सिर्फ तीन मनोचिकित्सक हैं, जबकि कॉमनवेल्थ देशों के मुताबिक हर एक लाख आबादी पर कम से कम 5-6 मनोचिकित्सक होने चाहिएं। साथ ही मानसिक बीमारी वाले लोगों के मानवाधिकारों के संरक्षण से जुड़े कानून में कई कमियां हैं।

हालांकि सरकार ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने के उद्देश्य से समय-समय पर समुचित कदम उठाए हैं। जैसे कि सरकार द्वारा राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति 2014, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति 2017 और मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 2017 को लाया गया। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से सितंबर 2020 में किरण हेल्पलाइन की शुरुआत की गई थी। इसके जरिए मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे लोगों को परामर्श दिया जाता है। 

गौरतलब है कि डब्ल्यूएचओ अपनी स्वास्थ्य की परिभाषा में शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी शामिल करता है। इसलिए  मानसिक स्वास्थ्य को वैश्विक स्वास्थ्य प्राथमिकताओं में शामिल किया जाना चाहिए। भारत में   इसकी चुनौतियों से निपटने के लिए राज्य और केंद्र के मध्य उचित समन्वय की आवश्यकता है। मानसिक स्वास्थ्य का समाधान करके ही हम देश में समावेशी विकास की उम्मीद कर सकते हैं।

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