बरेली: गन्ना किसानों के जीवन में कड़वाहट घोल रही मिठास

अनुपम सिंह/बरेली, अमृत विचार। चाैतरफा समस्याओं से घिरे किसान मिलाें की मनमानी से और टूटता जा रहा है। बेमौसम बारिश तो कहीं ओलावृष्टि की मार झेल रहे किसानों का दर्द चीनी मिलें और बढ़ा रही हैं। 14 दिन में गन्ने के भुगतान का आदेश होने के बाद भी महीनों गुजर गए, लेकिन अभी तक भुगतान …

अनुपम सिंह/बरेली, अमृत विचार। चाैतरफा समस्याओं से घिरे किसान मिलाें की मनमानी से और टूटता जा रहा है। बेमौसम बारिश तो कहीं ओलावृष्टि की मार झेल रहे किसानों का दर्द चीनी मिलें और बढ़ा रही हैं। 14 दिन में गन्ने के भुगतान का आदेश होने के बाद भी महीनों गुजर गए, लेकिन अभी तक भुगतान नहीं किया गया है। एक सहकारी और दो निजी मिलों पर गन्ना किसानों का करीब 212 करोड़ रुपये बकाया है। दो महीने बाद मिल चलाने की तैयारी है, लेकिन मिले देनदारी अभी तक चुकता नहीं कर पा रहीं हैं।

इसका खामियाजा गन्ना किसानों को भुगतना पड़ रहा है। वक्त पर पैसा नहीं मिलने की वजह से किसानों के जीवन में गन्ने की मिठास कड़वाहट घोलने का काम कर रही है। जिले के किसान मुख्य तौर पर गन्ने की खेती पर ही आश्रित है। अपनी खून, पसीने की मेहनत से किसान गन्ने की फसल को तैयार करता है। फिर भाड़ा लगाकर मिल में इस उम्मीद के साथ बेचता है, जिससे समय से पैसा मिलने पर वह उसे अपने इस्तेमाल में ला सके, लेकिन किसानों की हाल बेहाल है।

गन्ना बेचने के 14 दिन के भीतर भुगतान का नियम है, लेकिन मिलों की मनमानी की वजह से सारे नियम-कानून टूट रहे हैं। समय पर किसानों को पैसा नहीं मिलने से वे परेशान हैं, लेकिन उनकी परेशानी से मिलों कोई लेनादेना नहीं है। आलम ये है कि किसानों के गन्ने का भुगतान इस वर्ष का नहीं किया जा रहा है और नए सत्र में मिल चलाने की तैयारी होने लगी है। नवंबर के पहले सप्ताह में मिलों के चालू होने की उम्मीद है। सितंबर चल रहा है। दो माह बचे हैं।

मिलों पर करोड़ों रुपये बकाया है। इस भुगतान के लिए विभाग भी चिंतित है, लेकिन मिल के जिम्मेदार टालमटोल कर रहे हैं। यही वजह है कि किसानों का दर्द बढ़ता जा रहा है। जिस गन्ने की मिठास से उन्हें आर्थिक मजबूती की ताकत मिलती है, वही मिठास अब कड़वाहट का काम कर रही है।

कोरे आश्वासन से किसानों काे तसल्ली दे रहीं मिलें

किसानों का करोड़ों का भुगतान दबाए बैठी चीनी मिलों पर दबाव बनाए जाने पर वह जल्द भुगतान का काेरा आश्वासन तो दे देती हैं, लेकिन इसके बाद फिर से शांत हो जाती हैं। ऐसे में किसानों के सामने कई तरह की दिक्कतें खड़ी हो जाती हैं। समय से पैसा नहीं मिलने वह उनकी खेती नहीं संभल पाती। वजह, खेती पर निर्भर किसान फसल बेचकर ही दूसरी फसल को तैयार करता है, लेकिन अगर पहली फसल का भुगतान न मिले तो आर्थिक समस्या बहुत होती है।

इन चीनी मिलों पर है बकायेदारी

जिले की तीन ऐसी चीनी मिलें हैं, जिन पर बकायेदारी है। बहेड़ी स्थित केसर शुग मिल पर किसानों का 136 करोड़ रुपये अभी बकाया है। नवाबगंज स्थित ओसवाल मिल पर 55 करोड़ की बकायेदारी है। वहीं, सेमीखेड़ा स्थित सहकारी मिल पर 21 करोड़ बकाया है। कुल मिलाकर करीब 212 करोड़ रुपया बकाया है।

जिले की तीन चीनी मिलों पर 212 करोड़ की बकायेदारी है। निजी चीनी मिलों पर अधिक पैसा बकाया है। भुगतान के लिए मिलों पर दबाव बनाया जा रहा है। किसानों की समस्या को देखते हुए चीनी मिलों को भुगतान के आदेश दिए गए हैं।- मनीष शुक्ला, सहायक चीनी आयुक्त

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