भविष्य निधि में अंशदान न करने से पेंशन भुगतान के दावे पर नहीं पड़ता प्रतिकूल प्रभाव :हाईकोर्ट 

भविष्य निधि में अंशदान न करने से पेंशन भुगतान के दावे पर नहीं पड़ता प्रतिकूल प्रभाव :हाईकोर्ट 

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सेवानिवृत्ति परिलाभों के भुगतान में लगातार बरती जाने वाली लापरवाही को गंभीरता से लेते हुए कहा कि सेवानिवृत्ति परिलाभ एक कर्मचारी का अधिकार है और उसे उसके अधिकारों से वंचित करना संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन माना जाएगा। उक्त टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकलपीठ ने क्षेत्रीय उप शिक्षा निदेशक, उच्चतर माध्यमिक (लेखा एवं पेंशन), बरेली को इस आदेश से दो माह की अवधि के भीतर याची शौकत अली खान के सभी सेवानिवृत्ति बकायों का भुगतान करने का निर्देश दिया है। दरअसल याची को शुरू में अस्थायी आधार पर गांधी फैज-ए-आम कॉलेज, शाहजहांपुर में रसायन विज्ञान विभाग में डेमोंस्ट्रेटर के रूप में नियुक्त किया गया था। उसी के साथ दो अन्य व्यक्ति भी नियुक्त किए गए थे। 

शिक्षा निदेशक ने तीनों डेमोंस्ट्रेटरस् के वेतन भुगतान के संबंध में कुछ आपत्ति जताई थी, जिस पर याची ने दावा किया कि एक शासनादेश के माध्यम से उक्त कालेज में डेमोंस्ट्रेटर के तीनों पद स्वीकृत किए गए थे। इसी संबंध में तीनों कर्मचारियों ने सिविल विविध रिट याचिका दाखिल की, जिस पर अंतरिम आदेश द्वारा याचियों को निर्धारित संशोधित वेतनमान के अनुसार भुगतान करने का निर्देश दिया गया। इसके बाद याचियों को इस्लामिया इंटर कॉलेज, शाहजहांपुर में स्थानांतरित कर दिया गया। सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदन के अभाव में उनकी सेवाओं को उपरोक्त कॉलेज में स्थानांतरित करने के बाद सामान्य भविष्य निधि के अंशदान के लिए उनके वेतन से कोई कटौती नहीं की गई थी। अतः सेवानिवृत्ति देय राशि के भुगतान के लिए याची के दावे को खारिज कर दिया गया। हालांकि अंत में कोर्ट ने राज्य के इस तर्क को खारिज कर दिया कि याची के वेतन से भविष्य निधि के अंशदान के लिए कोई कटौती नहीं की गई, अतः वह पेंशन का हकदार नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याची केवल भविष्य निधि के रूप में कोई राशि पाने का हकदार नहीं है, लेकिन इससे पेंशन भुगतान का दावा करने के अधिकार पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः पेंशन के दावे को खारिज करने वाले आक्षेपित आदेश को पोषणीय ना मानते हुए रद्द कर दिया गया।

अधिवक्तागण बुधवार को न्यायिक कार्य से रहेंगे विरत
इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने अधिवक्ताओं को परेशान करने वाले कुछ मुद्दों, विशेष रूप से बार के प्रति कुछ न्यायाधीशों के आचरण को लेकर चिंता जताई है। इसके अलावा अधिवक्ताओं के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के भी कई मामले सामने आए हैं। मंगलवार को बार एसोसिएशन की बैठक के बाद बुधवार यानी 10 जुलाई को अधिवक्ताओं ने न्यायिक कार्य से विरत रहने का निर्णय लिया। बैठक की अध्यक्षता अनिल तिवारी और सचिव विक्रांत पांडेय ने की। संगठन के पदाधिकारियों ने वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करते हुए कहा कि वर्तमान स्थिति न्याय प्रशासन को नुकसान पहुंचा रही है। मौजूदा समस्याओं के बारे में मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली को पत्र के माध्यम से अवगत कराया गया है, जिससे सुधारात्मक उपाय सुनिश्चित किए जा सकें। पत्र में मामलों को सूचीबद्ध करने के संबंध में कुछ स्थापित प्रथाओं में बदलाव पर भी चिंता व्यक्त करते हुए कहा गया है कि उच्च न्यायालय के नियमों में संशोधन किए बिना तथा मौजूदा नियमों के विपरीत न्यायिक आदेशों के माध्यम से ई-फाइलिंग और रिपोर्टिंग की प्रक्रिया में बदलाव करने से अधिवक्ताओं के लिए काफी दिक्कतें उत्पन्न हो गई हैं। इसके अलावा 60 वर्ष से अधिक आयु के अधिवक्ताओं के लिए सभी अदालतों में एक साथ उपस्थित होना चुनौतीपूर्ण है, इसलिए सभी अदालतों में प्रतीकात्मक रूप से उपस्थित होने के बजाय व्यावहारिक तरीके से उपस्थित होने की परंपरा को बहाल करने की मांग की गई है। अंत में यह भी कहा गया है कि अगर कोई अधिवक्ता संकल्प के विपरीत कार्य करते हुए पाया गया तो उसे कारण बताओ नोटिस जारी कर उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाएगी।

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