राजनीति का हिस्सा बन गया है इमोशनल ड्रामा?, जानिए क्या कहती है बरेली की जनता
बरेली,अमृत विचार: राजनीति में अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए वैसे तो तमाम हथकंडे अपनाए जाते हैं लेकिन इनमें आजकल जो सबसे ज्यादा कारगर माना जा रहा है, वह है इमोशनल ड्रामा। लोग मानते हैं कि इमोशनल ड्रामा अब राजनीति का हिस्सा बन चुका है। अपनी कमियों को छिपाकर लोगों को अपनी ओर खींचने के लिए इसका सहारा लिया जाता है। इसी के जरिए वे मुद्दों पर बात करने से बचते हैं और जनता का भी ध्यान उसके मुद्दों से भटकाने में कामयाब हो जाते हैं।
राजनीति में 80 प्रतिशत इमोशनल ड्रामा ही रहता है। नेता कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। हालांकि आज के समय में तो परिवार के लोग भी कहकर मुकर जाते हैं तो नेताओं से क्या ही उम्मीद करनी चाहिए। वादों से मुकरने के बाद वे भी जनता को भावुक करके बहलाने की कोशिश करने लगते हैं--- मनमोहन, राजेंद्रनगर।
राजनीति में इमोशनल ड्रामा अब कोई नई बात नहीं है। यह भी राजनीति का ही हिस्सा है। पहले ऐसा नहीं था, नेता अपनी गलती स्वीकार करते थे और नैतिक आधार पर पदों से इस्तीफा भी दे देते थे। अब नेताओं के हाथ से चीजें फिसलने लगती हैं तो वे इमोशनल ड्रामा का सहारा लेना शुरू कर देते हैं--- लता, कर्मचारीनगर।
इमोशनल ड्रामा राजनीति में अपना उल्लू सीधा करने का बड़ा हथियार है। इसकी वजह से लोगों के मन में गलत धारणा स्थापित कर दी जाती है और समाज बंटने लगता है। बेरोजगारी और महंगाई को नेता इमोशनल ड्रामा से छिपाने की कोशिश करते हैं। यही समस्याएं मुख्य रूप से हर व्यक्ति की हैं---नदीम, कोहाड़पीर।
इमोशनल ड्रामा की वजह से लोगों में नकारात्मकता फैलती है। राजनीतिक दल इसी के जरिए कभी हमें जातियों में बांटने की कोशिश करते हैं और कभी धर्मों में। यह समाज के लिए नुकसानदेह साबित होता है। जनता को कुछ हासिल नहीं होता। नेताओं को देश हित के बारे में सोचना चाहिए--- अनवर, बड़ा बाजार।
चुनाव का नतीजा हमें देश चलाने के लिए एक शासन व्यवस्था देता है जिसे जीतने के लिए नेता हर तरह से जनता को लुभाने की कोशिश करते हैं। अपने आपको जनता से जोड़ने के लिए नेता प्रचार-प्रसार का सहारा लेते हैं और इसके लिए जनता के बीच अपने आप को वैचारिक और भावनात्मक रूप से प्रस्तुत करते हैं। इसे हम पूरी तरह इमोशनल ड्रामा नहीं कह सकते। कौन सा नेता जनता को अपनी ओर खींच पाता है इसी बात की होड़ है। इसके लिए उन्हें चाहे जो कुछ कहना या करना पड़े। हालांकि आज का नागरिक जागरूक है। उसके पास अपना विवेक है। जनता को भ्रमित करना आसान नहीं है--- प्रो. त्रिपाठी, बरेली कॉलेज।
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