पिठौरी अमावस्या के दिन इस खास विधि से करें मां दुर्गा की पूजा

पिठौरी अमावस्या के दिन इस खास विधि से करें मां दुर्गा की पूजा

भाद्रपद की अमावस्या का खास महत्व है। इस दिन आटा गूंथ करके मां दुर्गा सहित 64 देवियों की आटे से मूर्ति बनाते हैं। महिलाएं व्रत रखती हैं और उनकी पूजा करती हैं। आज के दिन आटे से बनी देवियों की पूजा होती है, इसलिए इसे पिठोरी अमावस्या कहा जाता है।इस साल पिठौरी अमावस्या 7 सितंबर …

भाद्रपद की अमावस्या का खास महत्व है। इस दिन आटा गूंथ करके मां दुर्गा सहित 64 देवियों की आटे से मूर्ति बनाते हैं। महिलाएं व्रत रखती हैं और उनकी पूजा करती हैं। आज के दिन आटे से बनी देवियों की पूजा होती है, इसलिए इसे पिठोरी अमावस्या कहा जाता है।इस साल पिठौरी अमावस्या 7 सितंबर 2021 को है। भाद्र मास में पड़ने वाली अमावस्या को पिठौरी या फिर कुशग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार पिठौरी अमावस्या के दिन महिलाएं अपनी संतान और सुहाग के लिए व्रत करतीं हैं। इस अमावस्या पर मां दुर्गा से मांगे सारे वरदान मां पूरा करती हैं।

शुभ मुहूर्त
भाद्रपद अमावस्‍या तिथि का आरंभ- 6 सितंबर 2021 को शाम 7 बजकर 40 मिनट से
भाद्रपद अमावस्‍या तिथि का समापन- 7 सितंबर 2021 को शाम 6 बजकर 23 मिनट पर समाप्त होगी।

व्रत का लें संकल्प
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद अमावस्या का व्रत विशेष फलदायी होता है। मान्यता है कि इस व्रत को माताएं ही करती हैं। इस दिन सुबह उठकर स्नान करें। स्नान करने से पहले पानी में गंगाजल छिड़क लें इस अमावस्या पर नहाने के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहनें और इस व्रत का संकल्प लें। पीठ का अर्थ आटा होता है, ऐसे में इस दिन 64 देवियों की आटे से मूर्ति यानी प्रतिमा बनाने की मान्यता है. बेसन का आटा गूंथकर उससे हार, मांग टीका, चूड़ी, कान बाली और गले के हार बनाकर प्रतिमाओं पर चढ़ाएं, फिर देवियों को फूल चढ़ाएं।

इसका लगाएं भोग
इस अमावस्या पर पूजन के लिए गुझिया, शक्कर पारे और मठरी बनाएं और देवी-देवताओं को भोग लगाएं। पूजा-पाठ के बाद आटे से बनाए देवी-देवताओं की आरती करें। पूजा-अर्चना करने के बाद ब्राह्मण या घर के किसी बड़े को पकवान देकर उनके पैर छुएं. पंडित को खाना खिलाएं और दान-दक्षिणा दें। इस तरह से किए गए व्रत को ही पूर्ण माना जाएगा और इसी के बाद व्रत लाभ मिलता है।

विशेष फलदायी है व्रत
ऐसा माना जाता है कि अमावस्या व्रत कथा देवी पार्वती ने भगवान इंद्र की पत्नी को सुनाई थी। अमावस्या चंद्र मास के शुक्ल पक्ष की शुरुआत का प्रतीक है। पूर्वजों को श्रद्धांजलि देना और उन्हें प्रसन्न करना सबसे शुभ माना जाता है। ये दृढ़ता से माना जाता है कि अमावस्या के दिन पूर्वज यात्रा करते हैं और आशीर्वाद देते हैं।

माता की बनाएं मूर्ति
इस दिन माता दुर्गा समेत 64 देवियों के आटे से मूर्तियां बनाते हैं और महिलाएं इन मूर्तियों की विधिवत पूजा-अर्चना करती हैं और इस दिन वो व्रत रखती हैं। इसीलिए इसे ‘पिठोरी अमावस्या’ कहा जाता है। इस दिन दान करने, तप करने और स्नान करने का विशेष महत्व है। इस दिन स्नान-ध्यान करके पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण और पिंडदान किए जाते हैं. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और वो अपना आशीर्वाद देते हैं।

यह भी पढ़े-

हरतालिका तीज: अखंड सौभाग्य के लिए इस दिन होगी भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा