Father's Day 2024: वही थी आखिरी मुलाकात...जब घर बिकवाकर पैसा लेने आया था बेटा

Father's Day 2024: वही थी आखिरी मुलाकात...जब घर बिकवाकर पैसा लेने आया था बेटा

शब्या सिंह तोमर, बरेली, अमृत विचार। नरेंद्र सक्सेना, यह उस पिता का नाम है जिसकी अकेली कहानी फादर्स डे पर सोशल मीडिया के हजार दिखावों पर भारी है। चार साल से वृद्धाश्रम में रह रहे करीब 70 की उम्र के नरेंद्र कुछ दिन पहले पैरालाइसिस के शिकार हुए थे। जिंदगी तो बच गई लेकिन इलाज नहीं हो पाया। अब बिस्तर पर दिन गुजर रहे हैं। 

जिस बेटे को अपनी सारी संपत्ति बेचकर बिजनेस के लिए 34 लाख रुपये दिए थे, उससे दोबारा उससे मुलाकात नहीं हुई। उनकी बहू फोन पर भी उससे उनकी बात कराने को तैयार नहीं है। लखनऊ में रह रही बेटी का भी दोटूक जवाब है कि वह अपने परिवार को देखे या बरेली में उन्हें देखने आए।

नरेंद्र की बदकिस्मती की कहानी उस समय शुरू हुई, जब कोरोना के दौर में उनकी पत्नी ने साथ छोड़ दिया। बेख्याली के उसी आलम में नवविवाहित बेटे ने दबाव डाला तो बगैर कुछ सोचे-समझे अपनी सारी प्रॉपर्टी बेच दी। जो 35 लाख रुपया मिला, उसमें से 34 लाख लेकर बेटा कुछ ही समय बाद अपनी पत्नी के साथ विदेश चला गया। एक लाख रुपये नरेंद्र के अकाउंट में जमा करा दिया। 

अकेलेपन और आश्रय की समस्याओं ने नरेंद्र का इम्तिहान लेना शुरू किया तो वह बुखारा के वृद्धाश्रम में चले आए। वृद्धाश्रम की प्रबंधक कांता गंगवार के मुताबिक पिछले चार साल में उन्होंने नरेंद्र को कभी प्रसन्न मुद्रा में नहीं देखा। जिंदगी में एकाएक हुए बदलाव ने शायद उन्हें इतना तोड़ दिया कि वह अपने आप में ही खोए रहते हैं।

इन चार साल में उनसे न कभी उनका बेटा मिलने आया, न बेटी। जैसे-तैसे इसी हाल में दिन गुजर रहे थे लेकिन इसी बीच होनी ने उनकी एक और परीक्षा ले डाली। शुक्रवार की सुबह उन्हें पैरालाइसिस का अटैक पड़ा तो तो शारीरिक तौर पर भी मोहताज हो गए। डॉक्टर ने बताया कि उनके दिमाग में खून का थक्का जम गया है जो बगैर ऑपरेशन ठीक नहीं हो सकता। कुछ होश में आने के बाद अब नोएडा में रह रहे उनके बेटे से फोन पर बात कराने की कोशिश की गई लेकिन बहू ने दो बार यह कहकर इन्कार कर दिया कि वह घर पर नहीं है। बेटी ने भी यह कहकर बरेली आने से साफ इन्कार कर दिया कि वह अपना परिवार देखे या उन्हें।

इलाज भी नहीं करा सकते, बैंक खाते पर कब्जा किए बैठी है बेटी
वृद्धाश्रम की प्रबंधक कांता गंगवार के मुताबिक जिला अस्पताल में इलाज की सुविधा न होने के कारण पैरालाइसिस का अटैक पड़ने के बाद नरेंद्र सक्सेना को प्राइवेट अस्पताल में ले जाया गया था। उनका इलाज कराने के लिए वृद्धाश्रम के पास बजट नहीं है। नरेंद्र का आयुष्मान कार्ड भी नहीं है। एक लाख रुपये उनके खाते में पड़े हुए हैं लेकिन उनकी पासबुक और एटीएम बेटी के ही पास है। 

एनपीसीआई न होने की वजह से वह आधार के जरिए भी अपना पैसा नहीं निकाल सकते। उन्होंने बताया कि एक और दिक्कत यह है कि नरेंद्र का वजन सौ किलो से ज्यादा है। उनके भारी शरीर की देखभाल के लिए चार कर्मचारी लगे रहते हैं लेकिन उन्हें इलाज की जरूरत है जो नहीं हो पा रहा है।

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