कासगंज: 'गुलाब सा चेहरा तेरा, नीलकमल तक क्यों जाऊं...'अमृत विचार अखबार और तुलसीदास साहित्य संस्थान ने आयोजित कराया कार्यक्रम 

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कासगंज: 'गुलाब सा चेहरा तेरा, नीलकमल तक क्यों जाऊं...'अमृत विचार अखबार और तुलसीदास साहित्य संस्थान ने आयोजित कराया कार्यक्रम 

कासगंज,अमृत विचार। वारह पत्थर मैदान पर महाकवि सन्त तुलसीदास साहित्यिक संस्थान शूकर क्षेत्र सोरोजी और अमृत विचार समाचार पत्र के तत्वाधान में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें दूर दराज से आए कवि-कवियत्रियों ने प्रतिभाग किया। देर रात तक लोगों को गुदगुदाया, लोग जमे रहे। साथ ही अतिथियों का सम्मान किया गया। वहीं अतिथियों ने कवियों का आभार जताते हुए संबोधन दिया।

कार्यक्रम का उद्घाटन प्रोफेसर डॉ. अंजना बशिष्ठ, डॉ. रावत ने मां शारदे के चित्र पर फूल माला चढ़ाकर व दीप प्रज्वलित कर किया। कार्यक्रम संयोजक विपिन शर्मा पत्रकार, मैनपुरी से आए कवि सतीश गुप्ता ने संचालन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ, बीड़ी राना ने की। उसके बाद स्वागत सम्मान किया। डॉ अंजना वशिष्ठ रावत ने भाजपा के वरिष्ठ नेता महेंद्र बघेल, समाज सेवी मनोज गुप्ता ने सभी अतिथि और कवियों को फूल माला शॉल पहनाकर और प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। कवि सम्मेलन को आगाज दिया लखनऊ से आई अंतर्राष्ट्रीय कवयित्री डॉ सरला शर्मा ने। मां सरस्वती की वंदना की। हास्य व्यंग्य गीत गजल रस हास्य आदि रस की रचनाओं के माध्यम से कई कवित्रियों ने लोगों से वाहवाही लूटी। सत्यवीर सिंह सिकरवार ने कविता के माध्यम से किसानों के हालातों को भी बयां किया। 

उन्होंने सुनाया किसानो आओ मेरे साथ दिखाएं, भारत की तस्वीर। लखनऊ से आईं अंतर्राष्ट्रीय कवियत्री डॉ. सरला शर्मा ने पढ़ा है खुसरो की ज़मीं रब की इनायत साथ रहती है। यहां तुलसी की चौपाई अमां की बात कहती है। दिल्ली से आए कवि सुनहरी लाल तुरंत ने पढ़ा वो ख़ूब हंसाता है संसद में बैठा, अंखियां मिचकाता है।

कवयित्री मुस्कान शर्मा ने कहा होंठों पे प्यासे हैं कई रोज़ से पनघट पे खड़े हैं, दरिया को मगर प्यास बुझाना नहीं आया। मैनपुरी से कवि सतीश मधुप ने पढ़ा अग्नि में तपकर वासी बनवास दे देंगे तुम्हें। उत्कर्ष अग्निहोत्री ने पढ़ा शोलो पे मुद्दतों चले तूफ़ा से लड़े हैं। कुछ लोग तो अदब के अदब से भी बड़े हैं। गीतकार डॉ. अजय अटल ने पढ़ा नैन में सागर है असुर नमकीन नहीं होते।

कवि विपिन शर्मा ने पढ़ा है गुलाब सा चेहरा तेरा, नील  कमल  तक  क्यों जाऊं। तेरी  बातों  में  अमृत  है ,गंगा जल तक क्यों जाऊं। बनकर के मुमताज बसी है ,मेरे दिल के कोने में, तो मैं मंदिर मस्जिद,गिरजा,ताज महल तक क्यों जाऊ। कवि वीरा मिश्रा ने पढ़ा दूर सारे भरम हो गए उनके ऐसे कर्म हो गए, आदमी दिख पढ़ता नहीं सब के सब बेशर्म हो गए। इसके अलावा संजीव सरगम, शिवम, विवेक झा, महेश संघर्षी, आतिश सोंलकी, मोहित सक्सेना ने ओज की कविता पर खूब तालियां बटोरी। कार्यक्रम संयोजक विपिन शर्मा थे।

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