मुरादाबाद: बैसाखी के बल पर लिया था अंग्रेजों से लोहा
(सलमान खान) मुरादाबाद, अमृत विचार। देश को आजादी यूं ही नहीं मिली। इसके लिए न जाने कितने क्रांतिकारी फांसी के फंदे पर झूले थे और न जाने कितनों ने गोली खाई थीं तब जाकर हमने यह आजादी पाई। देश ऋणी है उन क्रांतिवीरों का जिन्होंने देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए अपना …
(सलमान खान) मुरादाबाद, अमृत विचार। देश को आजादी यूं ही नहीं मिली। इसके लिए न जाने कितने क्रांतिकारी फांसी के फंदे पर झूले थे और न जाने कितनों ने गोली खाई थीं तब जाकर हमने यह आजादी पाई। देश ऋणी है उन क्रांतिवीरों का जिन्होंने देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। इसी तरह मुरादाबाद के भी सैकड़ों क्रांतिकारियों ने आजादी की लड़ाई में अपनी अहम भूमिका निभाई।
शहर के काला प्यादा के रहने वाले मौलाना इफ्तेखार फरीदी ने भी आजादी के लिए हुए आंदोलन में अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजा दी थी। वह हजरत शाह मुकम्मल साहब के नवासो में से थे। जिन्होंने एक टांग न होने के बाद भी बैसाखी के सहारे गोरों की नाक में दम कर दिया था। दरगाह हजरत शाह मुकम्मल साहब के सज्जादानशीन शिब्ली मियां बताते हैं कि इफ्तेखार फरीदी बैसाखी के बल पर ही जंग-ए-आजादी की हर बड़ी रैली और प्रदर्शनों में भाग लेते थे।
अंग्रेजी फौज एक टांग होने के बाद भी उन पर कोई रहम नहीं करती थी और लाठियां फटकारती थी। लेकिन एक पैर कटा होने के बाद भी वच कभी पीछे नहीं हटे। वह बैसाखी के बल ही अंग्रेजों ने लोहा लिया करते थे। उनका यह जोश के देखकर उस वक्त के सैकड़ों नौजवान जंग-ए-आजादी में शामिल हुए थे।
नौ साल की उम्र में गोरों ने टांग में मारी थी गोली
1916 में 25 नवंबर को शहर के काला प्यादा मोहल्ले में जन्मे मौलाना इफ्तेखार फरीदी में बचपन से ही आजादी की आग सुलग रही थी। उनके रिश्तेदार और हजरत शाह मुकम्मल साहब की दरगाह के सज्जादानशीन शिब्ली मियां ने बताया कि जब शहर में जंग-ए-आजादी के आंदोलन की रैली चल रही तब मौलाना इफ्तेखार फरीदी अंग्रेजों के खिलाफ नारे बुलंद कर रहे थे। उस समय उनकी उम्र सिर्फ नौ साल थी। इस बीच अंग्रेजी फौज ने रैली पर हमला बोलकर गोलियां बरसा दीं। गोली लगने से इफ्तेखार फरीदी की एक टांग खराब हो गई थी। इसके बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी थी और बैसाखी के बल पर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में शामिल हो गए थे।
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