गुजराती पगड़ी, लंबा कोट पहने 16 दिसंबर 1916 को कानपुर आए थे गांधी

गुजराती पगड़ी, लंबा कोट पहने 16 दिसंबर 1916 को कानपुर आए थे गांधी

बात 106 साल पुरानी है। लखनऊ में कांग्रेस का महाअधिवेशन था। कानपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी कनपुरिये कांग्रेस साथियों से यह कहकर गए कि गांधी को साथ लेकर जरूर लौटूंगा। विद्यार्थी जी के हठ के आगे लोकमान्य बालगंगाधर तिलक और मोहनदास करमचंद गांधी की एक न चली। उन्हें आना पड़ा। उस समय में लाला लाजपतराय …

बात 106 साल पुरानी है। लखनऊ में कांग्रेस का महाअधिवेशन था। कानपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी कनपुरिये कांग्रेस साथियों से यह कहकर गए कि गांधी को साथ लेकर जरूर लौटूंगा। विद्यार्थी जी के हठ के आगे लोकमान्य बालगंगाधर तिलक और मोहनदास करमचंद गांधी की एक न चली। उन्हें आना पड़ा। उस समय में लाला लाजपतराय बालगंगाधर तिलक और विपिनचंद्र पाल का नाम ऊंचाइयों पर था। लोगों के मन मे फिरंगियों का खौफ तो फिरंगियों के मन में लाल बाल पाल की तिकड़ी का खौफ।

गुजराती पगड़ी वाले गांधी तब महात्मा के नाम से विख्यात नहीं थे। इस तरह पहली बार उनके चरण कानपुर की धरती पर पड़े। यह कोई पहले से तय कार्यक्रम नहीं था। पर मूर्धन्य पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी पहली बार महात्मा गांधी और लोकमान्य तिलक को लेकर कानपुर आए। फिरंगियों के खौफ के कारण दोनों महाविभूतियों को कोई अपने यहां ठहराने को तैयार नहीं हुआ तो फीलखाना स्थित प्रताप प्रेस में गांधी ठहरे और कानपुर पुराना रेलवे स्टेशन के पास एक धर्मशाला में तिलक ठहराए गए। इसका उल्लेख प्रताप प्रेस में विद्यार्थी जी के सहयोगी दशरथ प्रसात त्रिवेदी ने अपने संस्मरण में लिखा भी है। उन दिनों लोकमान्य तिलक बहुत लोकप्रिय थे। गांधी शख्स तो थे पर शख्सीयत की प्रक्रिया में आ चुके थे। उनका चमत्कारी व्यक्तित्व ऊपर से गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा दी गयी राजनीतिक शिक्षा उन्हें तराश रही थी।

कानपुर में लोकमान्य तिलक के नेतृत्व में एक जुलूस निकला था और परेड में सभा हुई थी, लेकिन इस सभा में महात्मा गांधी का भाषण नहीं हुआ था। हां, उन्होंने कानपुर की इस पहली यात्रा में कई लोगों से मुलाकात जरूर की थी। वह डॉ. मुरारीलाल रोहतगी से मिलने उनके घर गए थे। महात्मा गांधी दूसरी बार 21 जनवरी 1920 को इलाहाबाद से लौटते समय कानपुर आए। उन्होंने स्वदेशी वस्त्र भंडार का उद्घाटन किया और लोगों को स्वदेश में निर्मित वस्त्र पहनने के लिए प्रेरित किया। सन 1920 में ही महात्मा गांधी तीसरी बार कानपुर आए। उन्होंने परेड मैदान में एक जनसभा को संबोधित किया था। इसमें उन्होंने सांप्रदायिक तनाव पर चिंता जताई थी।

गांधी जी चौथी बार 8 अगस्त 1921 को कानपुर आए, तो उनके तेवर तीखे थे। मारवाड़ी विद्यालय में उन्होंने कहा कि अंग्रेजों को भारत में रहना है, तो मालिकों की तरह नहीं, सेवकों की तरह रहना होगा। महात्मा गांधी पांचवीं बार दिसंबर 1925 में कांग्रेस के महाधिवेशन में आए थे और स्वदेशी का मूलमंत्र दे गए। छठी बार वह 22 सितंबर 1929 को आए। एक सभा में आह्वान किया कि दलितों के साथ भेदभाव न करें। अबकी वह कानपुर में तीन दिन रुके थे। महात्मा गांधी अंतिम बार 22 जुलाई 1934 को कानपुर आए। इस बार उन्होंने दलितों को मंदिरों में प्रवेश दिलाने के लिए सनातनियों से शास्त्रार्थ किया।

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