उन्नाव में किसानों की संघर्षमयी कहानी: ट्रांसगंगा सिटी में भूमि अधिग्रहण और मुआवजे का संघर्ष...राज्य सरकार से भी लगाई गुहार
उन्नाव, (पुनीत अवस्थी)। आज जब पूरे देश में किसान दिवस मनाया जा रहा है तब शंकरपुर के किसानों के संघर्ष की गाथा भी कहीं न कहीं सामने आती है। क्षेत्र के शंकरपुर, सरॉय, मनभौवना व कन्हवापुर गावों के किसानों ने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ लंबा संघर्ष किया। किसानों ने अपनी भूमि के मुआवजे की मांग को लेकर कई आंदोलनों का नेतृत्व किया और राज्य सरकार से कई बार अपनी मांगें पूरी करने की गुहार लगाई।
सन-2002 में ट्रांस गंगा सिटी के निर्माण के लिए इन किसानों की भूमि अधिग्रहित की गई थी। किसानों को मुआवजे के रूप में यूपीसीडा ने प्रति बीघा 28,000 रुपए तय किए थे, जो किसानों के लिए अत्यंत कम था। इसके विरोध में किसानों ने कृषि भूमि बचाव समिति का गठन किया और कई अहिंसक आंदोलन किए। इस आंदोलन में श्याम कुमार बाजपेई, लक्ष्मी शंकर अवस्थी, शिवनारायण मिश्रा और अन्य किसानों ने भूमि अधिग्रहण को नकारते हुए चर्म उद्योग के लिए भूमि देने से इंकार कर दिया।
किसानों के संघर्ष को बल मिला जब पूर्व विधायक रामकुमार एडवोकेट और पूर्व सांसद स्व. दीपक कुमार ने किसानों के पक्ष में वादे किए और मुआवजे की राशि बढ़ाने की कोशिश की। इसके बाद मुआवजा 28,000 से बढ़ाकर 1,51,000 प्रति बीघा कर दिया गया, लेकिन किसानों ने यह भी स्वीकार नहीं किया क्योंकि वे चर्म उद्योग के लिए अपनी भूमि देने के पक्ष में नहीं थे।
इसके बाद किसानों ने भूख हड़ताल, चूल्हा बंद आंदोलन और कई अन्य तरीके अपनाए। इस संघर्ष में कटरी क्रांति मंच के संस्थापक सतीश कुमार शुक्ला ने आंदोलन को नई दिशा दी। उनके नेतृत्व में किसानों ने रेल रोको आंदोलन और ’राजधानी मार्ग रोड जाम’ जैसे बड़े आंदोलन किए। इसके परिणामस्वरूप 2008 में पूर्व सांसद व सूबे के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक के प्रयासों से मुआवजा राशि को फिर से बढ़ाकर 5,51,000 प्रति बीघा किया गया।
हालांकि, भूमि अधिग्रहण और मुआवजे के मुद्दे पर कोई ठोस समाधान नहीं निकला और किसानों की समस्याएं लगातार बनी रही। 2012 में जब अखिलेश यादव की सरकार आई, तो किसानों ने फिर से अपना संघर्ष तेज किया और मुआवजे की मांग को लेकर मुख्यमंत्री से वार्ता की। वहीं, वर्ष 2012 व 2014 में किसान आन्दोलन प्रदेश प्रभारी अजय अनमोल के नेतृत्व मे चलाया गया था।
इसके बाद 2014 में एक ऐतिहासिक समझौता हुआ, जिसमें किसानों को 7 लाख प्रति बीघा मुआवजा देने का वादा किया गया। इसके अलावा, किसानों को परियोजना क्षेत्र में नौकरी में प्राथमिकता, पुनर्वास के रूप में 50,000 की राशि और गांव के समुचित विकास के लिए प्रोजेक्ट कीमत का 10 प्रतिशत मुआवजे के रूप में दिया गया। इसके बाद किसानों को 6 प्रतिशत विकसित भूमि देने का भी वादा किया गया। हालांकि, इस समझौते के बाद भी कुछ किसानों के पुनर्वास का कार्य पूरा नहीं हो सका और भूमि लौटाने के वादे अभी भी अधूरे हैं।
फिर भी, किसानों के संघर्ष की कहानी और उनके द्वारा किए गए आंदोलनों ने यह साबित कर दिया कि जब तक कोई आंदोलन संघर्ष के मार्ग पर चलता है, तब तक वह अपने हक की लड़ाई पूरी नहीं करता। यह किसानों का संघर्ष एक प्रेरणा बनकर उभरा है, जो न केवल भूमि अधिकारों के लिए था, बल्कि उनके सम्मान और समृद्धि की भी कहानी है।
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