महाकुंभ 2025: संतों के अन्नक्षेत्र में मिलेगी 'लंका' की चटनी, सब्जियों में 'रामरस' व रंगबदल की दाल, जानें क्या है इसकी कहानी
मिथलेश त्रिपाठी/प्रयागराज। तीर्थराज प्रयागराज की अपनी एक अलग महिमा है। यहां की हर एक बात रोचक और कई रहस्यमय कहानियों से जुड़ी हुई है। संगमतीरे लगने वाले माघ मेला, कुंभ, अर्धकुम्भ या फिर 12 वर्षों में लगने वाला महाकुंभ हो। संतों के पंडालों में अन्न क्षेत्र अनवरत चलता रहता है। इस बार महाकुंभ में भी यही होने वाला है।
संतों के पंडालो में लंका की चटनी और सब्जियों में रामरस व रंगबदल की दाल के स्वाद से लोग तृप्त हो जाएंगे। मालूम हो कि यहां पर आने वाले साधू- संतों की भाषाओं और शब्दावली को जानना भी किसी रोचक कहानी से कम नहीं। यहां हर बात रामनाम से ही शुरू होती है। तो आइये जानते हैं कि संतों की रसोई में लंका और रामनाम की क्या कहानी है।
प्रयाग में आने वाले साधू संतों के बोलचाल की शब्दावली को समझना सब के बस की बात नहीं है। उनकी शब्दावली को उसके साथ रहने वाले संत ही समझ सकते है। कहा जाता है कि अपने जीवन को प्रभु की शरण में सौंपने के बाद उनकी दैनिक दिनचर्या और आम बोलचाल भी अजीब हो जाती है। उनके जीवन के हर कण में श्रीराम का नाम बस जाता है। यहां तक की उनका खान पान भी राम के नाम से ही शुरू होता है। संतों की कुछ शब्दावली ऐसी भी है जिसे आप सुनकर चौंक जाएंगे। हमारे दैनिक उपयोगिता की वस्तुओं में भी उनके लिए रामनाम ही होता है। महाकुंभ में संतों के आश्रम - पंडालों में लंका की चटनी और सब्जी में रामरस मिलाकर अन्नक्षेत्र में आने वाले श्रद्धालुओं को परोसा जाएगा।
इसे कहते है सीता की रसोई
संतों की रसोई को सीता की रसोई कहते है। इनके रसोई में रखी हर समग्री के अजीबो गरीब नाम है। सभी समाग्रियों को अलग अलग नामों से पुकारा जाता है। रसोई में रखे मिर्च को लंका कहते है। सब्जी और दाल में मिश्रण होने वाली हल्दी पाउडर को रंगबदल कहा जाता है। इसी तरह से सब्जियों और दाल में पड़ने वाले नमक को रामरस कहते है। इतना ही नहीं चावल यानि भात को महाभोग, या फिर महाप्रसाद और रोटी को टिकर या रामरति कहते है। यहां भंडारे में भोजन करने वाले को प्रसाद पाना कहते है। जबकि भोजन बनाने वाले को भंडारी कहा जाता है।
संतों की असली पहचान है रामनाम। जो अखाड़े के सच्चे संत होते है। उन्हें इन नामों की पहचान होती है। जो फर्जी साधू होते है , उन्हें इस रामनाम का ज्ञान नहीं होता है। संतों के मन में राम के सिवाय कुछ नहीं हैं। इसलिए यहां की रसोई में रामनाम होता है। रामनाम से अन्नक्षेत्र में कमी नहीं होती, भंडार बढ़ता रहता है-प्रेम गिरि, राष्ट्रीय अध्यक्ष, जूना अखाड़ा।
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