लखनऊ: कलाकारों ने विशेषज्ञों से सीखी अनोखे मूर्तिशिल्प बनाने की कला, देखें तस्वीरें

8 दिवसीय ग्लेज राकू फायरिंग कार्यशाला का समापन

लखनऊ: कलाकारों ने विशेषज्ञों से सीखी अनोखे मूर्तिशिल्प बनाने की कला, देखें तस्वीरें

लखनऊ, अमृत विचार। जानकीपुरम स्थित क्ले एंड फायर स्टूडियो में 8 दिवसीय ग्लेज राकू फायरिंग कार्यशाला का आयोजन किया गया। 25 अगस्त को शुरू हुई इस कार्यशाला के प्रमुख प्रशिक्षक के तौर पर सिरेमिक ऑर्टिस्ट व क्ले एंड फायर के प्रेमशंकर प्रसाद, सहयोगी प्रशिक्षक मूर्तिकार विशाल गुप्ता (स्वतंत्र कलाकार) और कोऑर्डिनेटर अजय कुमार रहे। कार्यशाला में युवा कलाकार अर्चना सिंह (कुशीनगर), दृश्या अग्रवाल, वंशिखा सिंह, प्रीती कनौजिया और हर्षित सिंह ( सभी लखनऊ), प्रदीपिका श्रीवास्तव और उत्कल पाण्डेय (सीतापुर), तथा प्रकृति शाक्या (इटावा) की मौजूदगी रही।

फोटो

कलाकार भूपेंद्र अस्थाना ने बताया कि कार्यशाला कोऑर्डिनेटर अजय कुमार ने कार्यशाला के पहले दिन दोनों प्रशिक्षकों व सभी प्रतिभागी कलाकारों को टूल्स किट देकर उनका कार्यशाला में स्वागत किया। पहले दिन प्रतिभागियों को राकु ग्लेज के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। (राकू एक प्रकार का मिट्टी के बर्तन बनाने की जापानी विधि है, जो पारम्परिक रूप से जापानी चाय समारोहों में उपयोग की जाती है, यह अक्सर चाय के प्याले के रूप में बनाये जाते हैं) पारम्परिक जापानी प्रक्रिया में पकाये गए राकू के पात्रों को गर्म भट्टी से निकाल कर खुली हवा में ठंडा होने दिया जाता है। इसकी शुरुआत आधिकारिक रूप से 16वीं शताब्दी में जापान में हुई थी।

मिट्टी के वर्तन

कार्यशाला में सभी प्रतिभागी कलाकारों ने अपने मूर्तिशिल्पों पर टेक्सचर देकर फिनिशिंग करके मिट्टी में फाइनल मूर्तिशिल्प तैयार किया। मिट्टी में बने मूर्तिशिल्पों को 4 दिन सुखाया गया। सूखने के बाद उसे भट्टी में पकाया गया। मूर्तिशिल्प अगर सुखाया नहीं जाएगा तो वह भट्टी में टूट जाएगी। तैयार मूर्ति शिल्पों की बिस्किट फायरिंग कम तापमान पर की जाती है। अगले दिन इन मूर्तिशिल्पों को ठंडा होने के बाद भट्टी से निकाला गया। बिस्किट फायरिंग हुए मूर्तिशिल्पों पर राकू ग्लेज लगा कर फिर से भट्टी में रख दिया गया। इस बार भट्टी का तापमान पहले से ज्यादा रखा गया। 2 से 3 घंटे इसे पकाया गया। भट्टी से निकालकर मूर्तिशिल्प को बड़े लोहे के बक्से में रखे लकड़ी के बुरादे पर रखकर बक्से को एक घंटे के लिए बंद कर दिया गया। एक घंटे बाद बक्से को खोल कर मूर्तियां को पानी से धोया गया ताकि मूर्तिशिल्प पर लगी राख साफ़ हो जाए।

मिट्टी

मौजूदा समय में इस विधि का उपयोग डेकोरेशन के लिए किया जाता है। इस विधि से बने कप, प्लेट, बाउल या ओर कोई भी मूर्ति शिल्प को उपयोग में नहीं लिया जा सकता क्योंकि इसमें जो ग्लेज लगा होता है वह शरीर के लिए हानिकारक होता है।

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