जलवायु अनुकूल बीज

जलवायु अनुकूल बीज

जलवायु परिवर्तन फसलों की पैदावार और कृषि उत्पादकता को नुकसान पहुंचाता है और अपर्याप्त उत्पादकता कृषि की एक बड़ी चुनौती रही है। जलवायु परिवर्तन ने गेहूं और धान की खेती को प्रभावित किया है। इसी के चलते सरकार की ओर से मोटे अनाजों के उत्पादन और उपभोग को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। साथ ही खाद्य और पोषण सुरक्षा सरकार का एक मुख्य मुद्दा है। ऐसे में जलवायु अनुकूल फसलों की किस्मों को आगे बढ़ावा देना सरकार की प्राथमिकता में शामिल है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कृषि और बागवानी फसलों की उच्च उपज वाली, जलवायु अनुकूल और जैव-सुदृढ़ीकृत बीजों की 109 किस्मों को जारी किया। नई किस्में अत्यधिक लाभकारी होंगी,क्योंकि वे व्यय को कम करने में मदद करेंगी और उनका पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। मोटे अनाज पारंपरिक रूप से देश के अल्प संसाधन वाले कृषि-जलवायु क्षेत्रों में उगाए जाते हैं।

मोटे अनाज पोषक तत्वों से भरपूर सामग्री के लिए जाने जाते हैं और इसमें सूखा सहिष्णु, प्रकाश असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन आदि जैसी विशेषताएं विद्यमान होती हैं। जलावयु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को तकनीकी प्रगति, मौसम विज्ञान और डेटा विज्ञान जैसे एकीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से कम किया जा सकता है। 

देश भर में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन तैयार किया गया है। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कार्यान्वयन ढांचे, संसाधनों, कार्यान्वयन की प्रगति, किसान पंजीकरण, ब्लॉग आदि की जानकारी प्रदान करने वाला एक वेब पोर्टल भी लांच किया गया है। महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री ने प्राकृतिक खेती के लाभों और जैविक खाद्य की बढ़ती मांग पर चर्चा की तथा कृषि में मूल्य संवर्धन के महत्व को रेखांकित किया।

प्राकृतिक खेती स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों पर आधारित रसायन मुक्त कृषि पद्धति है। यह पारंपरिक स्वदेशी तरीकों को प्रोत्साहित करती है ,जो उत्पादकों को बाहरी आदानों पर निर्भर रहने से मुक्त करते हैं। चूंकि प्राकृतिक खेती में किसी भी सिंथेटिक रसायन का उपयोग नहीं होता है,जिसकी वजह से यह स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। इन खाद्यान्नों में उच्च पोषण तत्व होता है और बेहतर स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं।

यह मृदा के स्वास्थ्य में सुधार कर उत्पादकता में वृद्धि करती है। जलवायु अनूकूल फसलें तापमान और वर्षा के उतार-चढ़ाव के प्रति अधिक सहनशील होंगी और अधिक कुशल तरीके से पानी और पोषक तत्वों का उपयोग करेंगी। कृषि नीति को फसल उत्पादकता में सुधार को प्राथमिकता देनी चाहिए और ऐसे सुरक्षात्मक उपाय करने चाहिए, जो कि जलवायु परिवर्तनों के कारण होने वाले जोखिमों के साथ तालमेल बैठा सकें। इस क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश बढ़ाने की भी जरूरत है।