Eid 2024: प्रेम की निशानी इस इमारत से रानी संग चांद का दीदार करना चाहते थे यह King, अधूरी ही रह गई ख्वाहिश

वीरेंद्र पांडेय/ लखनऊ, अमृत विचार। लखनऊ में नवाबों ने जिन भवनों का निर्माण कराया। उनकी खूबसूरती आज भी देखते बनती है। यह इमारतें आज भी अवध की शान है। इन्हीं में से एक इमारत है सतखंडा। राजधानी के हुसैनाबाद स्थित इस इमारत को सतखंडा पैलेस भी कहते हैं। इस पैलेस को मोहब्बत की निशानी भी कहा जाता है। हालांकि इस इमारत का निर्माण अधूरा ही रह गया था।
इस इमारत का निर्माण कराने वाले किंग यानि बादशाह की मौत इमारत के निर्माण पूरा होने से पहले ही हो गई थी। बादशाह की चाहत थी कि वह अपनी बेगम के साथ इस इमारत पर खड़े होकर चांद को देखें। उन्होंने इस इमारत का निर्माण भी इसीलिए करना शुरू किया था कि उनकी बेगम जब चांद को देखें। तो उसमें कोई रुकावट न हो।
आखिर कौन है वह बादशाह और कब कराया था उन्होंने इस इमारत का निर्माण, आइए जानते हैं इस इमारत के निर्माण से जुड़ी कहानी।
इतिहासकार नवाब मसूद अब्दुल्ला के मुताबिक सन 1842 में किंग मोहम्मद अली शाह ने इस इमारत का निर्माण शुरू कराया था। किंग मोहम्मद अली शाह अवध के तीसरे बादशाह थे। इस इमारत के निर्माण के पीछे बादशाह की एक चाहत थी कि वह अपनी बेगम के लिए एक ऐसी इमारत बनाना चाहते थे जहां से वह चांद को आसानी से देख सके।
इमारत का निर्माण शुरू हुआ और इमारत चार मंजिल तक बन चुकी भी चुकी थी। इसी बीच एक दिन बादशाह मोहम्मद अली शाह इमारत के निरीक्षण पर गए हुए थे। वह इमारत का निरीक्षण कर ही रहे थे कि उनका पैर फिसल गया और वह घायल हो गए। उसके बाद उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती चली गई और इसी के चलते बाद में उनका इंतकाल हो गया। उसके बाद इस इमारत के निर्माण को रोक दिया गया।
सतखंडा मतलब इस इमारत में सात मंजिल बनाई जानी थी, लेकिन बादशाह की मौत के बाद इस इमारत के निर्माण को रोका गया। बादशाह के बेटे ने भी आगे इस इमारत के निर्माण में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। क्योंकि पिता के न रहने के बाद उनका मन नहीं था कि इस इमारत को आगे बनवाया जाए।
इस तरह प्रेम की निशानी कहीं जाने वाली यह इमारत आज भी अधूरी है। भले ही यह इमारत आज खंडहर में तब्दील हो रही हो, लेकिन इसकी खूबसूरती आज भी इसकी बुलंदी की कहानी बताती है।
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