हाईकोर्ट ने मथुरा के प्रसिद्ध दाऊजी मंदिर में रिसीवर की नियुक्ति से किया इनकार

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा के श्री ठाकुर बलदेव जी महाराज मंदिर में रिसीवर की नियुक्ति को लेकर दाखिल याचिका पर विचार करते हुए कहा कि पवित्र नगरी मथुरा वर्तमान में मंदिरों से संबंधित तुच्छ मुकदमों की चपेट में है, जिनमें से अधिकांश मुकदमे रिसीवर की नियुक्ति और मंदिरों के दिन-प्रतिदिन के कामकाज को नियंत्रित करने के लिए दाखिल किए गए हैं। रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों से यह पता चलता है कि उत्तराधिकार कानून के आधार पर दावा करने वाले पक्षकारों ने अपने लोगों को मंदिर का रिसीवर नियुक्त किया है और वे स्वयं को प्रबंधन समिति के मामलों का प्रभारी मान रहे हैं।
कोर्ट इस बात पर हैरान है कि निचली अदालतों द्वारा 1904 के समझौते पर गौर करने तथा मंदिर के सभी सेवायतों के बीच हुए समझौते के अनुसार प्रबंधन समिति गठित करने का कोई प्रयास क्यों नहीं किया गया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि रिसीवर की नियुक्ति तभी की जाती है, जब सभी उपाय विफल हो जाते हैं और संपत्ति की सुरक्षा के लिए कोर्ट के पास किसी व्यक्ति को नियुक्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। चूंकि वर्तमान में पंडों और सेवायतों के 700 से अधिक परिवार छह समूहों में विभाजित हैं, इसलिए 7 सदस्यीय समिति की नियुक्ति के लिए उनकी इच्छाओं को ध्यान में रखना आवश्यक है। वर्तमान याचिका दो ट्रस्टियों द्वारा दाखिल की गई है, जो यह प्रदर्शित करने में पूर्णतः असफल रहे हैं कि वह किस प्रकार स्वयं को दाऊजी मंदिर के ट्रस्टी या मंदिर के प्रबंधन के लिए प्रभारी व्यक्ति मान रहे हैं, जबकि 1904 के मूल समझौते में 7 सदस्यीय प्रबंधन समिति में उत्तराधिकार का कोई प्रावधान नहीं है। अंत में कोर्ट ने दाऊजी मंदिर के पंडों/सेवायतों के हितों की रक्षा को ध्यान में रखकर 1904 में 145 पंडों के परिवारों के मध्य हुए समझौते के अनुसार प्रबंध समिति के गठन पर जोर दिया, क्योंकि 1904 के बाद ना तो समझौते को रद्द किया गया और ना ही इसमें कोई परिवर्तन किया गया।
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि 1904 में पंडों और सेवायतों के 145 परिवारों के बीच हुए समझौते में यह स्वीकार किया गया था कि कोई भी व्यक्ति संबंधित मंदिर के रिसीवर के रूप में कार्य नहीं कर सकता है बल्कि 7 सदस्यीय प्रबंधन समिति ही मंदिर के कामकाज की देखभाल करेगी। इस प्रकार कोर्ट ने याचिका निस्तारित करते हुए मंदिर में रिसीवर की नियुक्ति को अस्वीकृत करते हुए मामले को जिला न्यायाधीश, मथुरा के पास उचित निर्णय के लिए वापस भेज दिया। उक्त आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की एकलपीठ ने गोविंद राम पांडेय और अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया।
बता दें कि वर्तमान याचिका में उल्लिखित मंदिर मथुरा के बलदेव महावन में स्थित 500 वर्ष पुराना एक प्रसिद्ध मंदिर है, जिसकी स्थापना परम पूज्य गोस्वामी कल्याण देवाचार्य जी महाराज ने की थी। उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने मंदिरों के मामलों का प्रबंधन और सेवा, पूजा-अर्चना का संचालन अपने हाथों में ले लिया। समय के साथ उत्तराधिकारियों के परिवार बढ़ते गए और 1903 के अंत तक 145 परिवारों के हाथ में मंदिर की सेवा और पूजा की जिम्मेदारी बंट गई। 2 सितंबर 1904 में 145 परिवारों के पारिवारिक सदस्यों द्वारा एक ट्रस्टीनामा निष्पादित किया गया, जिसे 13 सितंबर 1904 को पंजीकृत किया गया। पंजीकृत समझौते के अनुसार 145 परिवार के सदस्यों को 6 समूहों में विभाजित किया गया था। समझौते के अनुसार 7 सदस्य समिति मंदिर से संबंधित गतिविधियों की देखरेख करेगी।
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