लोक सेवक के खिलाफ केस चलाने के लिए राज्य व केंद्र सरकार की अनुमति जरूरी नहीं :इलाहाबाद हाईकोर्ट
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प्रयागराज, अमृत विचार। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत एक लोक सेवक के खिलाफ अपराध का संज्ञान लेने के लिए उक्त अधिनियम की धारा 19 के तहत सक्षम प्राधिकारी द्वारा वैध स्वीकृति अनिवार्य है। सक्षम प्राधिकारी की स्वीकृति के बिना लोक सेवक के खिलाफ मुकदमा चलाना गैरकानूनी माना जाएगा। हालांकि प्राधिकारी की स्वीकृति अमान्य पाए जाने पर अदालत अभियुक्तों को आरोपमुक्त कर सकती है और पार्टियों को ऐसे चरण में भेज सकती है, जहां सक्षम प्राधिकारी कानून के अनुसार अभियोजन के लिए एक नई मंजूरी दे सकता है। इसके अलावा यदि स्वीकृति आदेश में कोई त्रुटि, चूक या अनियमितता है तो यह तब तक घातक नहीं होगा जब तक कि इसका परिणाम न्याय का उल्लंघन ना हो। ये टिप्पणी न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकलपीठ ने छावनी क्षेत्र के कर्मचारियों की याचिका खारिज करते हुए दी।
दरअसल याची मोहम्मद अली जफर को पशु चिकित्सा निरीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था और सुशील कुमार को फार्मासिस्ट कंपाउंडर सह स्टोर कीपर, केंद्र सरकार अस्पताल, मेरठ में नियुक्त किया गया था| याची मोहम्मद अली जफर कार्यालय अधीक्षक, छावनी बोर्ड, मेरठ के पद पर भी कार्य कर रहे थे| सीबीआई, गाजियाबाद रक्षा मंत्रालय, महानिदेशक रक्षा संपदा, नई दिल्ली और ड्रग इंस्पेक्टर की टीम द्वारा एक संयुक्त औचक निरीक्षण किया गया था, जिसमें सीबीआई ने छावनी सामान्य अस्पताल मेरठ कैंट का निरीक्षण किया और घोर अनियमितताओं का पता लगाते हुए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
रिपोर्ट में बताया गया कि डॉ आराधना पाठक ने तत्कालीन चिकित्सा अधिकारी, कैंटोंमेंट जनरल अस्पताल, मेरठ में तैनात तथा वर्ष 2011-14 के दौरान गौरव अरोड़ा, प्रोप. मेसर्स अरोड़ा फार्मा, मेरठ, यूपी और अन्य अज्ञात व्यक्तियों के साथ मिलकर आपराधिक साजिश रची। उक्त साजिश को आगे बढ़ाने में उसने निर्धारित प्रक्रिया और मानदंडों का उल्लंघन किया तथा बेमानी और धोखाधड़ी से अत्यधिक दरों पर दवाएं ख़रीदीं और खातों में हेरफेर किया। याचियों द्वारा विशेष न्यायाधीश, सीबीआई द्वारा पारित सम्मन आदेश को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई।
अंत में कोर्ट ने यह नोट किया कि राज्य सरकार ने दिनांक 3/5/2019 को पारित सरकारी आदेश द्वारा स्पष्ट किया है कि छावनी बोर्ड के कर्मचारियों के संबंध में किसी सहमति की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह राज्य सरकार के कर्मचारी नहीं है और छावनी का क्षेत्र राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। छावनी बोर्ड के कर्मचारी द्वारा किए गए अपराधों की जांच के लिए राज्य सरकार या केंद्र सरकार से कोई सहमति अनिवार्य नहीं है। छावनी बोर्ड, मेरठ के कर्मचारी द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 के तहत किए गए अपराध के संबंध में कई गई जांच और दाखिल चार्जशीट अवैध है। हालांकि मौजूदा मामले में दाखिल की गई चार्जशीट संबंधित अधिकार क्षेत्र से बाहर होने के कारण अवैध है। इसमें कोई विवाद नहीं है कि छावनी के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र राज्य सरकार के अधीन क्षेत्रों की श्रेणी में नहीं आता है और याची केंद्र सरकार के कर्मचारी या राज्य सरकार के कर्मचारी नहीं है और केंद्र सरकार द्वारा छावनी बोर्ड में नियुक्ति नहीं होती है।
अंत में कहा जा सकता है कि वर्तमान मामले में दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम, 1946 की धारा 6 या 6ए लागू नहीं होती है, क्योंकि याची राज्य सरकार का कर्मचारी नहीं है और ना ही छावनी परिषद, मेरठ केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र या नियंत्रण में है।
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