बशीर बद्र
साहित्य 

Bashir Badr Ghazal: कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नजर को खबर न हो

Bashir Badr Ghazal: कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नजर को खबर न हो कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो मुझे एक रात नवाज़ दे मगर इस के बा'द सहर न हो  वो बड़ा रहीम ओ करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे तुझे भूलने...
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साहित्य 

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ जो कहा नहीं …
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