हल्द्वानी: जिन लाहौर नहीं वेख्या ओ जनम्याई नई…भारत-पाक विभाजन का वो दृश्य सपने में भी आ जाए तो नींद खुल जाती है

हल्द्वानी: जिन लाहौर नहीं वेख्या ओ जनम्याई नई…भारत-पाक विभाजन का वो दृश्य सपने में भी आ जाए तो नींद खुल जाती है

भूपेश कन्नौजिया, हल्द्वानी, अमृत विचार। तुम लोग क्या जानो वो दौर क्या था..क्या दिन थे वो..! जगह तो सुंदर थी पर लोग..बाप रे.. ! हिन्दू-मुसलमान ये भूल चुके थे कि वे इंसान हैं….सब के सर पर खून सवार था..औरतों-बच्चियों के साथ क्या जुल्म हुआ मैंने सब अपनी आंखों से देखा.. जिसने लाहौर नहीं देखा उसने …

भूपेश कन्नौजिया, हल्द्वानी, अमृत विचार। तुम लोग क्या जानो वो दौर क्या था..क्या दिन थे वो..! जगह तो सुंदर थी पर लोग..बाप रे.. ! हिन्दू-मुसलमान ये भूल चुके थे कि वे इंसान हैं….सब के सर पर खून सवार था..औरतों-बच्चियों के साथ क्या जुल्म हुआ मैंने सब अपनी आंखों से देखा.. जिसने लाहौर नहीं देखा उसने क्या देखा हमसे पूछो…एक रौबदार आवाज, कड़क मिजाज वाली हंसा मेहरा जो अपने बडे़ पुत्र के साथ गौलापार रहती हैं आज भी अपने बचपन के पेशावर में बिताए गए कुछ पलों को याद करती हैं तो सिहर उठती हैं।

अचानक हुई मुलाकात में जब पता चला कि वे उस दौर में पाकिस्तान के पेशावर में रहीं जब भारत-पाकिस्तान बंटवारा हो रहा था तो उनसे बातचीत कर उस दौर का आंखों देखा मंजर सुनने का मन हुआ जिस पर हंसा ने हामी भारी और उस दर्द को अपने अंदाज में बयान किया।

हंसा बताती हैं कि वे अपने परिवार के साथ चाचा के वहां जो उस वक़्त पेशावर में आर्मी के उच्च पद पर आसीन थे के वहां घूमने गयी हुईं थी। तब वे बहुत छोटी थी उम्र केवल नौ-दस साल रही होगी ,भारत-पाकिस्तान का युद्ध का शुरुआती चरण था, लेकिन बहुत विकराल स्वरूप, ट्रेन को रोकने के लिए पेड़ काटकर पटरियों पर डाल दिये गए थे। औरतों,लड़कियों,बच्चियों के साथ खुलेआम बत्तीमीजी की जा रही थी। पेड़ से बांधकर लोगों को पीटा जा रहा था, औरतों से उनके बच्चों को छीनकर आग में झोंक दिया जा रहा था। जगह-जगह रोने-बिलखने,चीखने -चिल्लाने की आवाज़ें आ रहीं थीं, चारों और आगजनी लाठी,डंडे,तलवार लिए लोग घूमते नजर आ रहे थे। ऐसे हालातों में चाचा ने सेना के हेलीकॉप्टर से परिवार के सदस्यों को सुरक्षित वहां से निकालकर दिल्ली तक पहुंचाया। यह सब देखकर मुझे कभी गुस्सा आता तो कभी सहम जाती। खैर हम दिल्ली तो सकुशल पहुंच गए उसके बाद चाचा अपने खर्चे से कई भारतीय मजदूरों को भी वहां से निकाल कर लाए।

वे बताती हैं की भारत-पाक विभाजन के दौरान लोगों की जमीन जायदाद कैसे बरबाद हुई वो मंजर आंखों से हटता नहीं, लोग थोड़ा बहुत पैसा कमर में बांध कर लाए, लोगों को इस कदर लूटा जा रहा था कि मानों खुलेआम नरपिशाच घूम रहे हों। उम्र के इस पड़ाव में अब जब भी वो दिन याद आते हैं तो अपने आप को भाग्यशाली समझती हूं।

अब हंसा मेहरा की उम्र अब तकरीबन 88 वर्ष है और आज भी तंदुरुस्त हैं , बस कान जवाब दे गए हैं..थोड़ा ऊंचा सुनती हैं। मगर एक आर्मी और खेती किसानी वाले परिवार से ताल्लुक रखने के चलते आज भी सेहत से एकदम फिट हैं। अपने तीन पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र नरेंद्र मेहरा के साथ गौलापार में रह रही हैं और कभी कभार यहीं नजदीक में रहने वाले छोटे बेटों यशवंत सिंह और विजय सिंह के वहां भी आती जाती रहती हैं। वैसे तो हंसा का मायका बडगल रौतेला शीतला खेत जिला अल्मोड़ा में है मगर शादी यहां भांवर में हो गयी तो बस फिर यहीं की होकर रह गयीं।

जब सुरैया को भी नहीं मिली अनुमति
हंसा बताती हैं कि उस वक़्त की मशहूर बॉलीवुड अदाकारा सुरैय्या भी पाकिस्तान में फंसी थीं, उन्हें भारत आने की अनुमति नहीं मिल रही थी। वे लगातार प्रयास कर रहीं थीं पर उन्हें कुछ समय रूकने को कहा गया और उनकी सुरक्षा बढ़ा दी गयी थी।

मोदी की हैं प्रशंसक
पीएम मोदी की तारीफ करते हुए हंसा एक सांस में कह जाती हैं कि वो बढ़िया नेता हैं, हमारे समय में नेहरू,सुभाष और गांधी जैसे नेताओं ने देश हित में काम किया अब मोदी जी से ही उम्मीद है, हंसा साफ कहती हैं कि पार्टी नहीं मुझे दमदार नेता से मतलब है।

दोबारा पाकिस्तान घूमने का मौका मिले तो जाऊंगी..
दोबारा पाकिस्तान घूमने जाना चाहेंगी के सवाल पर हंसा ने तपाक से कहा बिल्कुल , लेकिन उम्र के इस पड़ाव में अब सब बदल गया होगा, वो वीभत्स यादें निकाल दी जाएं तो वहां की सुंदरता की भी याद है मुझे।