कोई तो बताएगा, मेरा नंबर कब आएगा... वेंटिलेटर पर अस्पतालों की व्यवस्था, उखड़ रहीं मरीजों की सांसें, जानिए क्या बोले जिम्मेदार

केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर से औसतन रोजाना 10 से 12 मरीज वेंटिलेटर बेड खाली न होने के चलते करने पड़ रहे रेफर

कोई तो बताएगा, मेरा नंबर कब आएगा... वेंटिलेटर पर अस्पतालों की व्यवस्था, उखड़ रहीं मरीजों की सांसें, जानिए क्या बोले जिम्मेदार

पंकज द्विवेदी/लखनऊ, अमृत विचार। सरकारी अस्पतालों, चिकित्सा संस्थानों में गंभीर मरीजों को बचाने की व्यवस्था वेंटीलेटर पर है। डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ व टेक्नीशियन की कमी से शत प्रतिशत वेंटीलेटर का संचालन नहीं हो पा रहा है। इससे गंभीर मरीजों की सांसें उखड़ रही हैं। हालत ये है कि कोविड के समय में खरीदे गए वेंटिलेटरों का संचालन भी शुरू नहीं हो पाया है। 

गुरुवार को ट्रामा सेंटर के बाद लोहिया में भी वेंटीलेटर न मिलने से शाहजहांपुर निवासी युवक की जान चली गई। अकेले ट्रॉमा सेंटर से ही रोजाना 10 से 12 मरीजों को वेंटिलेटर बेड खाली न होने से लौटा दिया जाता है। शाहजहांपुर निवासी अंकुर (25) को बरेली से 250 किमी का सफर तय कर गुरुवार को लखनऊ लाया गया। 

मरीज को केजीएमयू में वेंटिलेटर नहीं मिल पाया तो लोहिया रेफर कर दिया गया। लोहिया से परिजन मरीज को बलरामपुर अस्पताल पहुंचे, यहां चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया। शासन ने मामले को संज्ञान लेकर ट्रॉमा सेंटर और लोहिया संस्थान के जिम्मेदारों से स्पष्टीकरण मांगा गया है। जिम्मेदारों पर कार्रवाई भले हो जाए लेकिन मरीज की जिंदगी नहीं लौटाई जा सकती। अंकुर की तरह ही राजधानी के अस्पतालों में आने वाले कई गंभीर मरीजों को वेंटिलेटर बेड के लिए धक्के खाने पड़ते हैं।

इन जगहों पर प्रशिक्षित स्टॉफ मिल जाए तो चलने लगे वेंटिलेटर

लोकबंधु अस्पताल में 40 वेंटिलेटर हैं, जिनमें 10 वेंटिलेटर का संचालन हो पा रहा है। बाकी 30 वेंटिलेटर बंद पड़े हैं। डॉक्टर, नर्सिंग, पैरामेडिकल स्टाफ व टेक्नीशियन की कमी से सभी वेंटिलेटर का संचालन नहीं हो पा रहा है। महानगर स्थित भाऊराव देवरस अस्पताल में तीन वेंटिलेटर हैं। अधिकारियों का कहना है कि जरूरत पड़ने पर वेंटिलेटर का संचालन हो रहा है। बाकी समय वेंटिलेटर का संचालन नहीं हो रहा है। बीकेटी स्थित राम सागर मिश्र हॉस्पिटल में पांच वेंटिलेटर हैं। ये भी डॉक्टर-कर्मचारियों के अभाव में बंद हैं। सीएमएस डॉ. वीके शर्मा का कहना है जल्द स्टाफ का प्रशिक्षण करा कर वेंटिलेटर शुरू कराए जाएंगे।

वेंटिलेटर के लिए यहां लगी रहती है कतार

केजीएमयू में सबसे ज्यादा करीब 350 वेंटिलेटर का संचालन हो रहा है। इनमें से 74 वेंटिलेटर बेड ट्रॉमा सेंटर में हैं। सभी बेड हमेशा भरे रहते हैं। लोहिया संस्थान में लगभग 130 वेंटिलेटर हैं। इमरजेंसी में 35 वेंटिलेटर हैं। मेडिसिन विभाग में 20, न्यूरोलॉजी में 6, पीडियाट्रिक व एनस्थीसिया विभाग के आईसीयू में 15-15 वेंटिलेटर का संचालन हो रहा है। इसके अलावा अन्य विभागों में वेंटिलेटर का संचालन हो रहा है। बलरामपुर अस्पताल में 40 वेंटिलेटर हैं। डॉक्टरों का कहना है कि सभी वेंटिलेटर पर मरीज भर्ती किए जा रहे हैं।

निजी अस्पतालों से रेफर होकर आने वाले मरीजों की संख्या अधिक

ट्रॉमा सेंटर के क्रिटिकल केयर यूनिट के प्रभारी डॉ. अविनाश अग्रवाल ने बताया कि वेंटिलेटर के लिए आने वाले मरीजों की संख्या कारपोरेट अस्पतालों से रेफर होकर आने वालों की ज्यादा है। शुरुआत में परिजन मरीज को इन अस्पतालों में भर्ती करा देते हैं। एक मरीज को वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत औसतन 7 से 8 दिन की पड़ती है। हालांकि, राहत की बात यह है कि 75 फीसदी मरीज वेंटिलेटर सपोर्ट से ठीक हो रहे हैं।

इस व्यवस्था से मिलेगी राहत

ट्रॉमा प्रभारी डॉ. प्रेमराज सिंह ने बताया कि उनकी ओर से शासन को एक प्रस्ताव भेजा गया है कि सभी प्रमुख अस्पतालों में वेंटिलेटर बेडों की जानकारी ऑनलाइन रहे। साथ ही सभी जगह के प्रभारियों को सीयूजी नंबर जारी किया जाए। जिससे मरीज को रेफर करने से पहले यह सुनिश्चित कर लिया जाए कि किस अस्पताल में वेंटिलेटर खाली है। इससे मरीजों को भटकना नहीं पड़ेगा।

इतने स्टाफ की पड़ती है जरूरत

जानकारों का कहना है कि एक वेंटिलेटर के आठ घंटे के संचालन के लिए एक सीनियर डॉक्टर, एक सीनियर व दो जूनियर रेजिडेंट की जरूरत होती है। चार नर्सिंग स्टाफ व एक टेक्नीशियन की जरूरत पड़ती है।

ट्रॉमा सेंटर के क्रिटिकल केयर मेडिसिन में 34 वेंटिलेटर बेड हैं। इनमें से 2 बेड अंगदान के मरीजों के लिए आरक्षित रहते हैं। कोशिश रहती है कि सभी मरीजों को बेड उपलब्ध हों। औसतन रोजाना 10 से 12 मरीजों को बेड खाली न होने की स्थिति में लौटाना पड़ता है... डॉ. अविनाश अग्रवाल, प्रभारी क्रिटिकल केयर यूनिट, ट्रॉमा सेंटर।

ट्रॉमा में कुल वेंटिलेटर बेड 74 संचालित हो रहे हैं। कोशिश रहती है कि कोई भी मरीज वापस न लौटे। बेड खाली न होने की स्थिति में एम्बुबैग के सहारे इलाज शुरू किया जाता है। वेंटिलेटर बेड खाली होने पर मरीज को शिफ्ट कर दिया जाता है... डॉ. प्रेमराज सिंह, प्रभारी ट्रॉमा सेंटर।

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