भारतीय भारोत्तोलन और मीराबाई चानू के लिए उथल-पुथल वाला रहा वर्ष 2024, मुक्केबाजों नें भी निराशा किया
नई दिल्ली। बहुत कम ऐसे खेल हैं जिन्हें किसी एक खिलाड़ी से जोड़कर देखा जाता है लेकिन भारतीय भारोत्तोलन में मीराबाई चानू एक ऐसा नाम है जो पिछले कई वर्षों से भारत में इस खेल की पर्याय बनी हुई है और वर्ष 2024 भी कोई अपवाद नहीं रहा। टोक्यो ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली मीराबाई पेरिस ओलंपिक में यह कारनामा नहीं दोहरा पाई जो भारत के लिए सबसे बड़ा झटका था। भारतीय भारोत्तोलन के लिए यह इसलिए भी निराशाजनक साल रहा क्योंकि वह इस वर्ष भी मीराबाई का उत्तराधिकारी ढूंढने में नाकाम रहा।
मीराबाई ने टोक्यो ओलंपिक में रजत पदक जीत कर इस खेल में भारत का 21 साल से चला आ रहा सूखा खत्म किया था। जहां तक पेरिस ओलंपिक की बात है तो मीराबाई एकमात्र भारोत्तोलक थी जिन्होंने इन खेलों के लिए क्वालीफाई किया था। इस 29 वर्षीय खिलाड़ी को ओलंपिक से पहले कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ा। चोटिल होने के कारण वह कुछ प्रमुख प्रतियोगिताओं में भाग नहीं ले पाई जिसका मतलब था कि वह ओलंपिक के लिए अपेक्षित तैयारी नहीं कर सकी थी। मीराबाई ने इसके बावजूद अपनी अदम्य इच्छा शक्ति के दम पर पेरिस ओलंपिक में भाग लिया। तब भी उनकी फिटनेस को लेकर कानाफूसी चल रही थी।
मीराबाई ने हालांकि अपना सर्वश्रेष्ठ देने की पूरी कोशिश की लेकिन आखिर में उन्हें चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा। यह खिलाड़ी और देश के लिए निराशाजनक परिणाम था क्योंकि मीराबाई को शुरू से ही पदक का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। मीराबाई लगातार यह कहती रही हैं कि उनकी खेल यात्रा अभी समाप्त नहीं हुई है और एशियाई खेलों में पदक जीतना उनका अगला लक्ष्य है लेकिन लगातार चोटिल होने के कारण उनके आगे खेलने को लेकर आशंकाएं भी व्यक्त की जा रही हैं। जापान में 2026 में होने वाले एशियाई खेलों तक मीराबाई की उम्र 31 साल की हो जाएगी और इस उम्र में भारोत्तोलन जैसे खेल में बने रहना आसान नहीं होता जबकि यह भारतीय खिलाड़ी चोटों से भी जूझती रही है।
मीराबाई से इतर भारतीय भारोत्तोलन का भविष्य अनिश्चित नजर आता है। इस खेल में भारत राष्ट्रमंडल खेलों में अच्छा प्रदर्शन करता रहा है लेकिन 2022 के राष्ट्रमंडल खेलों में चमक बिखेरने वाले खिलाड़ी इसके बाद गुमनामी के अंधेरे में चले गए। इसका उदाहरण जेरेमी लालरिननुंगा है, जो चोट और अनुशासनात्मक मुद्दों के कारण गुमनामी में जाने से पहले जूनियर, युवा और राष्ट्रमंडल स्तर पर ठोस प्रदर्शन के साथ प्रमुखता से उभरे थे। उम्मीद की एक किरण 21 वर्षीय ज्ञानेश्वरी यादव है, जिन्होंने मीराबाई की अनुपस्थिति में विश्व चैंपियनशिप में 49 किग्रा वर्ग में पांचवा स्थान हासिल किया था।
भारतीय मुक्केबाजी के लिए निराशाजनक रहा वर्ष 2024
नई दिल्ली। कोचिंग संकट से लेकर पेरिस ओलंपिक की असफलता तक भारतीय मुक्केबाजी के लिए वर्ष 2024 निराशाजनक रहा। भारतीय मुक्केबाजों ने वर्ष 2023 में अच्छा प्रदर्शन किया था और इसलिए उनसे काफी उम्मीद की जा रही थी। लेकिन पेरिस ओलंपिक में कोई भी भारतीय मुक्केबाज पदक नहीं जीत पाया। भारत ने अभी तक ओलंपिक खेलों की मुक्केबाजी में तीन कांस्य पदक जीते हैं। यह पदक विजेंदर सिंह (2008), एमसी मैरी कॉम (2012) और लवलीना बोरगोहेन (2021) ने हासिल किए हैं और इस साल इसमें कुछ नए नाम जुड़ने की उम्मीद थी। निशांत देव दुर्भाग्य से ओलंपिक पदक से चूक गए लेकिन निकहत जरीन और लवलीना ने निराश किया जबकि इन्हें पदक का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। रिंग से इतर भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (बीएफआई) की लापरवाही के कारण भारत ने एक ओलंपिक कोटा भी गंवाया।
विश्व स्तर की बात करें तो मुक्केबाजी के शीर्ष अधिकारी इस खेल को ओलंपिक में बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। भारत को पहले विश्व क्वालीफाइंग टूर्नामेंट में निराशा हाथ लगी और उसके नौ मुक्केबाजों में से कोई भी ओलंपिक कोटा हासिल नहीं कर पाया। इसके बाद हाई परफार्मेंस निदेशक बर्नार्ड डन को अपना पद छोड़ना पड़ा। केवल हार ही परेशान करने वाली नहीं थी बल्कि जिस तरह से भारतीय मुक्केबाज बाहर हुए वह चिंता का विषय था। भारत के अधिकतर मुक्केबाज नॉकआउट में बाहर हुए। भारतीय मुक्केबाजी की निराशा तब और बढ़ गई जब महिलाओं के 57 किग्रा भार वर्ग में परवीन हुड्डा को अपना ओलंपिक कोटा गंवाना पड़ा। यह मुक्केबाज अपना ठिकाना बताने में नाकाम रही जिसके लिए विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (वाडा) ने उन्हें 22 महीने के लिए निलंबित कर दिया।
इसके लिए भारतीय मुक्केबाजी महासंघ भी दोषी रहा क्योंकि विश्व संस्था ने उसे इस चूक के बारे में पहले ही अवगत करा दिया था। भारत के छह मुक्केबाजों ने पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया जबकि पिछले ओलंपिक खेलों में भारत के नौ मुक्केबाजों ने हिस्सा लिया था। भारतीय खिलाड़ियों में जरीन को पदक का मुख्य दावेदार माना जा रहा था लेकिन महिलाओं के 50 किग्रा वर्ग में चीन की मुक्केबाज वू यू के सामने उनकी एक नहीं चल पाई। पिछले ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता लवलीना को भी चीन की खिलाड़ी ने हराया। अमित पंघाल फिर से प्री क्वार्टर फाइनल से आगे नहीं बढ़ पाए लेकिन सबसे दिल तोड़ने वाली हार निशांत की रही जिन्हें पुरुषों के 71 किग्रा भार वर्ग के क्वार्टर फाइनल में दबदबा बनाए रखने के बावजूद मेक्सिको के मार्को वर्डे अल्वारेज़ ने 1-4 से हराया।
इस बीच अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आइओसी) ने धमकी दी कि अगर राष्ट्रीय खेल महासंघ निलंबित अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ से जुड़े रहते हैं तो इस खेल को 2028 में लॉस एंजेलिस में होने वाले ओलंपिक खेलों से बाहर किया जा सकता है। भारत ने इसके बाद वर्ल्ड बॉक्सिंग का हाथ थाम दिया जिसे आईओसी से मान्यता हासिल है। मुक्केबाजी 2028 में होने वाले ओलंपिक खेलों का हिस्सा रहेगी या नहीं इसको लेकर मामला अभी अधर में लटका हुआ है।
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