इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : Sambhal Violence से संबंधित याचिकाओं को किया निस्तारित

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : Sambhal Violence से संबंधित याचिकाओं को किया निस्तारित

प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को सुनवाई के दौरान संभल हिंसा में पुलिस अत्याचार की कथित घटनाओं के स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली जनहित याचिका को वापस लेने की अनुमति देते हुए कहा कि राज्य सरकार ने हिंसा की घटना की जांच के लिए पहले ही न्यायिक जांच आयोग का गठन कर दिया है। याचिका में की गई सभी प्रार्थनाएं उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित जांच आयोग के दायरे में आती हैं। समिति द्वारा रिपोर्ट सौंपने के बाद ही समानांतर कार्यवाही हो सकेगी।

अगर भविष्य में किसी अधिकार का उल्लंघन होता है या कार्यवाही का कोई नया कारण बनता है तो याची उचित चरण में अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। उक्त आदेश न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी की खंडपीठ ने एसोसिएशन ऑफ़ प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राइट्स (एपीसीआर) द्वारा दाखिल जनहित याचिका को वापस लेने की अनुमति देते हुए कहा। मालूम हो कि राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश देवेंद्र कुमार अरोड़ा, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अमित मोहन प्रसाद और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी अरविंद कुमार जैन की सदस्यता वाले न्यायिक आयोग का गठन किया है। अधिवक्ता पवन कुमार यादव के माध्यम से दाखिल उपरोक्त याचिका में आरोप लगाया गया था कि पुलिस मनमानी ढंग से सामूहिक गिरफ्तारियां, हिरासत और गोलीबारी सहित बल प्रयोग कर रही है, जिसने मुख्य रूप से एक समुदाय के लोगों को डर और दहशत के माहौल में जीने के लिए बाध्य कर दिया है।

दूसरी ओर संभल हिंसा से संबंधित एक अन्य याचिका को क्षेत्राधिकार का हवाला देते हुए मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने किसी अन्य पीठ के समक्ष नामित करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वर्तमान में आपराधिक रिट की प्रकृति वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने का अधिकार उक्त पीठ को नहीं है, चूंकि वर्तमान मामला आपराधिक मुद्दे से संबंधित है, इसलिए यह इस पीठ के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। अतः याचिका को क्षेत्राधिकार वाली अन्य उचित पीठ के समक्ष स्थानांतरित करने का निर्देश दिया। याचिका में गत 24 नवंबर को संभल में हुई हिंसा के कारणों की सीबीआई और एसआईटी द्वारा जांच करने की मांग की गई थी, साथ ही धार्मिक स्मारकों और स्थलों के सर्वेक्षण में सहायता करते समय जिला प्राधिकारियों की भूमिका और जिम्मेदारियों के संबंध में आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने की बात कही गई थी।

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