देश में रोजगार सृजन
वैश्विक वृद्धि भारत विश्व में सबसे तेजी से बढ़ती हुई बड़ी अर्थव्यवस्था है, बावजूद इसके कि देश में रोजगार सृजन बहुत कम है। भारत के एक तिहाई युवा न तो पढ़ाई कर रहे हैं और न ही काम कर रहे हैं। गुणवत्तापूर्ण रोजगार सृजन की कमी है। 40 प्रतिशत कामकाजी उम्र के व्यक्ति श्रम बाजार से विमुख हैं और महिलाओं की भागीदारी कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों तक सीमित है, जिससे रोजगार की चुनौती गंभीर हो गई है। देश की अर्थव्यवस्था में रोजगार और आय हमेशा से अहम मुद्दे रहे हैं। अनुमानों से संकेत मिलता है कि 2023-24 में रोजगार की वृद्धि दर 6 फीसदी रही है।
वैश्विक अनुभव बताते हैं कि रोजगार वृद्धि के बिना आर्थिक विकास सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल का कारण बन सकता है। यह कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसे सुलझाया न जा सके और समस्या का ईमानदारी से वर्णन करना शमन उपायों के लिए एक अच्छी शुरुआत होगी। शिक्षा और आय से आंकी जाने वाली श्रम की गुणवत्ता दिखाती है कि तमाम श्रम गहन उद्योगों में बहुत मामूली सुधार हुआ है। ऐसे में चिंता केवल रोजगार के अवसर तैयार करने की नहीं बल्कि यह भी है कि रोजगार के अवसर कहां पैदा किए जा रहे हैं और कुल उत्पादन में श्रमिकों को कितना हिस्सा मिल रहा है।
श्रम ब्यूरो के सर्वेक्षण में पाया गया कि आठ सबसे बड़े रोजगार सृजन क्षेत्रों-कपड़ा, चमड़ा, धातु, ऑटोमोबाइल, रत्न एवं आभूषण, परिवहन, सूचना प्रौद्योगिकी और हथकरघा क्षेत्र में नौकरियां घट रही हैं। हालांकि सरकार जादुई तरीके से स्थिति को बदल नहीं सकती, लेकिन वह समाधान के बारे में विचार कर सकती है। रोजगार सृजन के लिए सरकार को और ज्यादा प्रयास करने चाहिए। नीति आयोग ने निर्यात बढ़ाकर रोजगार सृजन पर जोर देने के लिए एक विशेषज्ञ कार्यबल का गठन किया है।
गौरतलब है कि रोजगार से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है। कृषि उत्पादन का औद्योगीकरण करने के लिए, सरकार को अधिक रोजगार पैदा करने और किसानों पर बोझ कम करने के लिए अधिक सार्वजनिक और सहकारी निवेश पर विचार करना चाहिए। भारत की रोजगार चुनौती के लिए एक व्यापक और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। संरचनात्मक मुद्दों को हल करके, कौशल विकास को बढ़ावा देकर, समावेशी विकास को बढ़ावा देकर और सामाजिक सुरक्षा को सुदृढ़ करके भारत आर्थिक विकास एवं गुणवत्तापूर्ण रोजगार सृजन के बीच के अंतर को कम कर सकता है। इससे न केवल समान विकास सुनिश्चित होगा बल्कि भारत मानव पूंजी विकास में वैश्विक नेतृत्वकर्त्ता के रूप में भी स्थापित होगा। देश में सामाजिक और आर्थिक नीति निर्माण के लिए रोजगार सृजन को धुरी बनाया जाना चाहिए।