बिचौलियों के मकड़जाल से रूठा किसान, आमजन परेशान : प्याज, लहसुन, मटर का आयात बाहर से, आसमान पर भाव

बिचौलियों के मकड़जाल से रूठा किसान, आमजन परेशान : प्याज, लहसुन, मटर का आयात बाहर से, आसमान पर भाव

बाराबंकी, अमृत विचार : महंगी लागत ऊपर से किसान और बाजार के बीच खड़े बिचौलिए ने किसान को परंपरागत खेती के लिए मजबूर कर रखा है। यही वजह है कि खेतों की उर्वरा शक्ति बेहतर होने के बावजूद किसान प्याज के अलावा लहसुन, मटर, हरी मिर्च के उत्पादन से किनारा किए हुए है और फिलहाल इन्ही सब्जियों के रेट बाजार में आसमान छू रहे हैं। इस महंगाई के पीछे थोक व्यापारी भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। 

इस समय के बाजार भाव पर नजर डालें तो प्याज 50 से 60 रुपये किलो, लहसुन 3 से साढ़े तीन सौ रुपये किलो, हरी मटर चार सौ रुपये किलो, हरी मिर्च ढाई से तीन सौ रुपये पसेरी बिक रही है। लहसुन का हाल यह कि बीते दो सालाें से इसका बाजार भाव दो सौ रुपये से नीचे नहीं आया है। यही वजह है कि लहसुन के शौकीन इसका स्वाद ढंग से नहीं ले पा रहे। बाजार में बाहर से आ रहा प्याज, लहसुन, हरी मटर, मिर्च आदि जगह बनाए हुए हैं। स्थानीय किसान इनके उत्पादन से पीछे हटा रहा है। कारण यह कि एक तो इनकी उत्पादन लागत बजट से बाहर हो जाती है दूसरे फसल तैयार होने पर इनका उत्पाद खरीदा तो कम रेट पर जाता है पर वहीं सामग्री बाजार में बढ़े भाव पर बेंच ली जाती है।

नतीजा यह कि किसान अपनी लागत तक नहीं निकाल पाता। उत्पादन के बाद मंडी या बाजार के बीच में खड़ा बिचौलिया बाजार भाव का फायदा किसान तक पहुंचने नहीं देता, यही वजह है कि किसान पारंपरिक फसलों आलू, धान, सरसों आदि की ओर ही ज्यादा ध्यान दे रहा है। इसका सीधा असर उपयोगकर्ता पर पड़ रहा, वह बाजार में मनमाने भाव पर इन वस्तुओं को खरीदने को विवश है। यहां तक कि किसानों को जागरूक करने वाली सरकारी योजनाएं भी धरातल पर औंधे मुंह गिर रही हैं। उद्यान निरीक्षक अनिल कुमार शुक्ला कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि किसान प्याज लहसुन आदि का उत्पादन नहीं करता पर उसे बेहद कम मात्रा में में रखा है। किसानों को जागरूक किया जा रहा है। वह सरकारी अनुदान का लाभ पाकर फसल उगा सकते हैं।

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