Editorial : जागरूकता बढ़ाना जरूरी  

Editorial : जागरूकता बढ़ाना जरूरी  

अमृत विचार : वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत इस वर्ष 127 देशों में 105वें नंबर पर है। इससे पता चलता है कि देश में कुपोषण की स्थिति बहुत गंभीर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कुपोषण का तात्पर्य किसी व्यक्ति की ऊर्जा एवं पोषक तत्व ग्रहण में कमी, अधिकता या असंतुलन से है। जबकि सूचकांक में पड़ोसी देश नेपाल 68, श्रीलंका 56 और बांग्लादेश 84वें नंबर पर हमसे आगे हैं। सिर्फ पाकिस्तान 109 वें रैंक के आधार पर हमसे भी पीछे है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स, भूख को मापने और ट्रैक करने का एक उपकरण है। यह यूरोपीय एनजीओ ऑफ कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्टहंगरहिल्फ़ द्वारा तैयार किया जाता है।

चिंता की बात है कि रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इस मुद्दे से निपटने के उपायों में अधिक प्रगति के अभाव में दुनिया के कई सबसे गरीब देशों में भूख का स्तर कई दशकों तक उच्च बना रहेगा। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार भारत में पांच वर्ष से कम आयु के 35.5 प्रतिशत बच्चे स्टंटिंग के शिकार हैं। 19.3 प्रतिशत बच्चे वेस्टिंग के शिकार हैं। 32.1 प्रतिशत बच्चे अल्प-वजन के शिकार हैं। तीन प्रतिशत बच्चे अति-वजन के शिकार हैं। यह ऐसी स्थिति है जो किसी व्यक्ति के आहार में ऐसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों के अपर्याप्त सेवन से उत्पन्न होती है जो   स्वास्थ्य, वृद्धि एवं विकास के लिए आवश्यक होते हैं।

कुपोषण का मुद्दा देश में सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक भिन्नताओं के जटिल मिश्रण से जुड़ा हुआ है। कुपोषण मानव पूंजी के विकास में बाधा उत्पन्न करता है, जिससे आर्थिक और सामाजिक प्रगति की संभावना सीमित हो जाती है। कुपोषण के कारण बाल्यावस्था और वयस्कता दोनों में कार्य उत्पादकता में कमी आ सकती है, जिससे देश का समग्र आर्थिक उत्पादन प्रभावित हो सकता है। इस व्यापक समस्या की बहुमुखी प्रकृति पोषण संबंधी संकेतकों में आगे और गिरावट रोकने के लिए तत्काल ध्यान देने और समर्पित संसाधनों का निवेश करने की मांग रखती है। 

हालांकि भारत ने 2000 के बाद से अपनी बाल मृत्यु दर में उल्लेखनीय रूप से सुधार किया है। इसके बाद भी बाल कुपोषण एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है, जिसमें दुबलापन और बौनापन दोनों ही खतरनाक रूप से उच्च स्तर पर हैं। देश में कुपोषण की चुनौती से निपटने के लिए पोषण अभियान, आंगनवाड़ी कार्यक्रम, और मिड-डे मील योजना चलाई जा रही है। फिर भी कुपोषण के उन्मूलन के लिए भारत को अपनी आबादी के स्वास्थ्य एवं सेहत को प्राथमिकता देनी चाहिए तथा इसमें निवेश करना चाहिए। इसके लिए सामाजिक जागरूकता बढ़ाना भी आवश्यक है।