संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक

संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक

भारत की आर्थिक क्षमता आंशिक रूप से साकार हुई है, फिर भी कम श्रम भागीदारी और सामाजिक-राजनीतिक जटिलताओं जैसी चुनौतियों से बाधित है। हालांकि चुनौतियों के बीच वैश्वीकरण की समुत्थानशीलता में भारत की यात्रा लगातार प्रगति की ओर अग्रसर है।  वैश्वीकरण की शुरुआत ने भारतीय समाज को बड़े पैमाने पर बदल दिया। 

बाजार पूंजीकरण के मामले में भारत दुनिया में चौथा सबसे बड़ा बाजार बनकर उभरा है। वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था एक दूसरे से जुड़ गए। वैश्वीकरण ने भारत की अर्थव्यवस्था, समाज और सांस्कृतिक पहचान पर कई तरह से प्रभाव डाला है। व्यापार और निवेश के नए अवसर सामने आए हैं। इससे आर्थिक विकास हुआ है। भारत के उद्योगों का विस्तार हुआ है। रोजगार के अवसर बढ़े हैं। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि हुई है। प्रौद्योगिकी में उन्नति हुई है। 

भारत विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप हब बन गया। वैश्वीकरण ने भारत को अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से अपने रक्षा क्षेत्र को आधुनिक बनाने और अपनी सामरिक स्थिति को बढ़ाने में सक्षम बनाया है। भारत 100 स्मार्ट शहरों का विकास कर रहा है। भारत की संस्कृति में दूसरे समाजों और उनके मानदंडों का असर दिखने लगा। अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां भारतीय बाजार में निवेश करने लगीं। वैश्वीकरण ने धन के संकेंद्रण को तीव्र कर दिया है, जिससे शहरी अभिजात वर्ग को लाभ हुआ है, परंतु ग्रामीण और सीमांत आबादी पीछे रह गई है। 

गौरतलब है कि स्वतंत्रता  के दौरान दो प्रतिशत से वर्ष 2023 में 7.93 प्रतिशत तक अपनी वैश्विक आर्थिक हिस्सेदारी बढ़ाने के बावजूद, वैश्विक अर्थव्यवस्था में देश का भविष्य अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एकीकरण के साथ आत्मनिर्भरता के संतुलन पर टिका हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमान के अनुसार, प्रति व्यक्ति आय 2,730 डॉलर तक पहुंचने में 75 वर्ष लग गए, जबकि इसमें 2,000 डॉलर और जोड़ने में केवल पांच वर्ष लगेंगे। 

 यानी कि वैश्वीकरण को एक ऐसे मार्ग पर अग्रसर किया जा सकता है, जो न सिर्फ समावेशी विकास व सामाजिक बराबरी को प्रमुखता देते हुए तालमेल स्थापित करने वाला हो, बल्कि टिकाऊ पर्यावरण को भी प्राथमिकता दे। भारत का भविष्य गहन आर्थिक एकीकरण के साथ आत्मनिर्भरता के संतुलन पर निर्भर है। इसलिए भारत को घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना चाहिए, समुत्थानशील आपूर्ति शृंखलाओं की स्थापना की जानी चाहिए, अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना चाहिए।

 भारत पहले से ही वैश्विक एकीकरण का लाभ उठाने के लिए कौशल विकास  पर ध्यान दे रहा हैै। वैश्वीकृत विश्व में भारत की पूरी क्षमता को उजागर करने के लिए रणनीतिक स्वायत्तता और घरेलू विकास को प्राथमिकता देने वाला एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है।