विनिर्माण क्षेत्र के मुद्दे
भारत एक उभरता हुआ विनिर्माण केंद्र है। विनिर्माण क्षेत्र में विलय और अधिग्रहण गतिविधि में वृद्धि, सहायक सरकारी नीतियां, विस्तारित उत्पादन क्षमता और निजी इक्विटी और उद्यम पूंजी से पर्याप्त निवेश, देश की दीर्घकालिक आर्थिक सफलता के लिए एक मजबूत आधार तैयार कर रहे हैं। विनिर्माण क्षेत्र में सीमेंस, जीई, फिलिप्स, सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स, पेप्सिको, एबीबी, माइक्रोन आदि जैसी अग्रणी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा उत्पादन सुविधाओं में बड़े नए निवेश किए गए हैं।
पिछले पांच वर्षों में, भारत ने विदेशी तकनीकी सहयोग में वृद्धि देखी है, विशेष रूप से मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक्स और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों में, जिसमें अमेरिका, जर्मनी और जापान प्रमुख प्रौद्योगिकी हस्तांतरण भागीदार हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान, भारत ने तेजी से फार्मास्यूटिकल्स और टीकों का उत्पादन करके अपनी विनिर्माण क्षमता का प्रदर्शन किया, जिससे इसकी विनिर्माण क्षमताओं के बारे में धारणाएं बदल गईं।
विडंबना है कि भारत का विनिर्माण क्षेत्र वैश्विक मानकों से फिर भी पीछे है। क्योंकि भारत में रसद बुनियादी ढांचा खराब है, जिससे लागत बढ़ती है और प्रतिस्पर्धा प्रभावित होती है। बिजली की कमी और परिवहन नेटवर्क अपर्याप्त होने से आपूर्ति श्रृंखलाओं और उत्पादन दक्षता में दिक्कत होती है। भारतीय विनिर्माण क्षेत्र को वियतनाम जैसे कम श्रम लागत वाले विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के साथ-साथ चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।
भारत में अनुसंधान और विकास पर खर्च सकल घरेलू उत्पाद का 0.7 प्रतिशत है, जो दक्षिण कोरिया (4.8 प्रतिशत) या चीन (2.4 प्रतिशत) से बहुत कम है। वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देश कम श्रम और परिचालन लागत के साथ बेहतर कारोबारी माहौल देते हैं। भारत के विनिर्माण क्षेत्र में आर्थिक विकास, रोज़गार सृजन और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2025 में भारत का पूंजीगत व्यय उच्च बना रहेगा। इसके लिए भारत को विनिर्माण क्षेत्र में कई मुद्दों का समाधान करना होगा।
महत्वपूर्ण है कि केंद्र सरकार बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण में तेजी लाने, प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और व्यापार करना आसान बनाने के लिए उद्योग हितधारकों के साथ काम कर रही है। गति शक्ति पहल के तहत मल्टी-मॉडल परिवहन प्रणालियों, बंदरगाह संपर्क और समर्पित माल गलियारों में निवेश में तेजी लाई जानी चाहिए। श्रम कानूनों, भूमि अधिग्रहण प्रक्रियाओं और पर्यावरणीय अनुमोदन को सरल बनाने से अनुपालन लागत कम हो सकती है तथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित हो सकता है। विनिर्माण परियोजनाओं के लिए एकीकृत एकल-खिड़की अनुमोदन प्रणाली लागू की जानी चाहिए।