घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण

घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण कानून, 2005 एक नागरिक संहिता है जो भारत में हर महिला पर लागू होता है, चाहें उसकी धार्मिक संबद्धता या सामाजिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो। उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को भरण-पोषण और मुआवजे से संबंधित मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली एक महिला की अपील पर अपना फैसला सुनाया। महिला अधिकारों के संरक्षण में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का बड़ा महत्व है।

भारत में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा तथा अपराध की घटनाएं निरंतर जारी हैं, जो देश के समक्ष गंभीर चिंता का कारण बनी हुई है। 2005 के अधिनियम के अनुपालन के बाद भी भारत में घरेलू हिंसा की घटनाओं में कमी नहीं आई है। इन हालात में भारत में घरेलू हिंसा के विरुद्ध कानूनों के प्रभावी प्रवर्तन में बाधा डालने वाली सामाजिक-सांस्कृतिक और कानूनी चुनौतियों पर चर्चा जरूरी हो जाती है।

न्यायालय ने कहा कि भारत में एक महिला को पुत्री, बहन, पत्नी, मां, साथी या एकल महिला के रूप में घरेलू हिंसा एवं भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जो कि चिंतनीय है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5), 2019-2021 के अनुसार, 18 से 49 वर्ष की आयु के बीच की 29.3 प्रतिशत विवाहित भारतीय महिलाओं ने घरेलू/यौन हिंसा का अनुभव किया है 18 से 49 वर्ष की आयु की 3.1 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ा है। यह केवल महिलाओं द्वारा दर्ज कराए गए मामलों की संख्या है। 

अक्सर ऐसे बहुत से मामले होते हैं जो पुलिस तक कभी नहीं पहुंच पाते। एनएफएचएस के आंकड़ों के अनुसार हिंसा की शिकार 87 प्रतिशत विवाहित महिलाएं मदद नहीं मांगती हैं। घरेलू हिंसा के विरुद्ध कानूनों का प्रवर्तन चुनौतीपूर्ण है? कानूनों का असंगत क्रियान्वयन प्रभावी प्रवर्तन में बाधा डालता है। इसका कारण कानून प्रवर्तन एजेंसियों और न्यायिक निकायों में घरेलू हिंसा के मामलों से निपटने के लिए उचित प्रशिक्षण का अभाव हो सकता है। साथ ही अदालत में घरेलू हिंसा साबित करने के लिए पर्याप्त सबूतों की आवश्यकता होती है।

गवाहों या भौतिक साक्ष्यों की कमी से मामले कमज़ोर हो सकते हैं। भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध कभी न खत्म होने वाले चक्र के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। घरेलू हिंसा अक्सर परिवार के भीतर ही होती है। कानूनी कार्रवाइयों से पारिवारिक रिश्ते खराब हो सकते हैं, जिससे पीड़ित कानूनी उपाय अपनाने में हिचकिते हैं। ऐसे में ज़मीनी स्तर पर महिलाओं के हितों के लिए कार्य करने वाले संगठनों एवं समुदायों को दृढ़ता से समर्थन करने की आवश्यकता है।

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