दस दिन होगी अंतरात्मा की आराधना, विकारों का विसर्जन...कानपुर के इन मंदिरों में कल से महापर्व पर्युषण की होगी शुरुआत

दस दिन होगी अंतरात्मा की आराधना, विकारों का विसर्जन...कानपुर के इन मंदिरों में कल से महापर्व पर्युषण की होगी शुरुआत

कानपुर, अमृत विचार। क्रोध, लोभ, मोह आदि विकारों से बचने का संदेश देने के लिए जैन धर्म (दिगंबर जैन) का महापर्व पर्युषण कल से शुरू होगा। इस दौरान मंदिरों में विविध कार्यक्रम आयोजित होंगे। 

भगवान महावीर स्वामी, एकनाथ स्वामी, शांतिनाथ भगवान व अन्य तीर्थंकर का अभिषेक पूजन किया जाएगा। पर्युषण महापर्व को दस लक्षण महापर्व भी कहते हैं। जनरलगंज, आनंदपुरी स्थित जैन मंदिर व अन्य मंदिरों और जिनालयों में इस दौरान पूजन-अर्चन के लिए सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ रहेगी। 

दस लक्षण महापर्व के इन दस दिनों में उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम अंकिचन्य व उत्तम ब्रह्मचर्य से आत्म साधना की जाएगी। इसमें हर दिन एक धर्म का पालन करते हुए अनुयायी पूजन व अर्चन करेंगे। 

जैन मंदिरों में महावीर भगवान के जीवन दर्शन के बारे में श्रद्धालु जानेंगे। रविवार से दिगंबर जैन समाज का आत्म शुद्धि का पावन महापर्व दस लक्षण महापर्व का शुरू होगा। जिसमें पहले दिन आनंदपुरी दिसंबर जैन मंदिर में उत्तम क्षमा पर सुबह अभिषेक, शांतिधारा होगी। 

इसके बाद जैन धर्म के मुख्य शास्त्र तत्वरसूत्र का वाचन व संगीतमय पूजन होगा। शाम को प्रवचन, सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। पहले दिन नव ज्योत्सना ग्रुप की ओर से भक्तांबर की महिमा पर नमक नाटिका का मंचन होगा। जनरलगंज स्थित श्री दिगंबर जैन बड़ा पंचायती मंदिर में भी 10 दिन संगीतमय पूजन व सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे।   

आइए समझे क्या हैं दसधर्म 

उत्तम क्षमा धर्म 

यह क्रिया जो हमें पतन व पुण्य की ओर ले जा सकती है। इन पर्वों में मन व पांचों इंद्रियों से ऐसा करो जो सालभर में नहीं किया हो। दसलक्षण महापर्व में आपनी आत्मा की आराधना करें, दया को जीवन में उतारे। आत्मा हमारी मालिक है, इसका आदर करें। 

उत्तम मार्दव धर्म 

मार्दव धर्म वाला व्यक्ति विनयशील होता है। बड़ों के सामने तो सभी झुकते हैं, लेकिन छोटों को गले लगाने के लिए जो झुके वहीं मार्दव धर्म वाला है। भगवान ने कहा कि चींटी को बचाओ। मुझे देखने पर भक्त बनोगो, लेकिन चींटी को बचने में भगवान बन जाओगे।  

उत्तम आर्जव धर्म 

जब मनुष्य अपने मन से छत-कपट, धोखा, चोरी करना, ऐसे भाव को निकाल देता है। वह अपने स्वभाव को सरल कर लेता है और विनय से युक्त बना लेता है तो उसे उत्तम आर्जव कहा जाता है। वह मनुष्य अपने जीवन में उत्तम आर्जव अपना लेता है। 

उत्तम शौच धर्म 

बाह्य शुद्धता शौच धर्म नहीं बल्कि मन की पवित्रता ही शौच धर्म है। जब मन की शुद्धता व पवित्रता होगी तो ही संसार, देह व भोगों से दूर होंगे। शौच धर्म का दूसरा नाम संवेग धर्म है। लोभ का त्याग ही हमारे अंदर शौच धर्म को जन्म देता व प्रगट करता है।   

उत्तम सत्य धर्म 

किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए उस वस्तु के सत्य स्वरूप को समझना चाहिए। तभी हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं। बिना सत्य जाने हमें असफलता ही मिलती है। व्यवहार से भगवान ने सत्य के 10 स्वरूप बताए हैं। आत्मा की अनुभूति ही उत्तम सत्य धर्म है। 

उत्तम संयम धर्म 

दुनिया में जो भी है वह सत्य है। कुछ प्रगट है और कुछ अप्रगट। अपने मन व पांचों इंद्रियों को वश में करना और पांच स्थावर व त्रस काय की रक्षा करना ही संयम हैं। यह संयम ही एक दिन हमें सर्वज्ञता की तरफ ले जाएगा। 

उत्तम तप धर्म 

संयम व कर्म निर्जरा के लिए जो तपा जाए वह वो तप धर्म कहलाता है। गुरु शिष्य से नहीं, शिष्य गुरु से संबंध बनाए वहीं उत्कृष्टता है। बड़ी वस्तु छोटी से आकर्षित हो तो विनाशकारी है। खुद के गुण व दोष देखों और समुचित प्राप्त करों यह उत्तम तप धर्म है। 

उत्तम त्याग धर्म 

10 बाह्य व 14 अतरंग परिग्रह का त्याग ही उत्तम त्याग है। हमने जो पाप किए हैं, राग-द्वेष मानकर किए हैं, यह उनके त्याग का दिन है। अगर पाप नहीं करते हैं तो पुण्य की जरूरत नहीं है। लेकिन पाप का त्याग नहीं कर सकते तो पुण्य करने की जरूरत है। 

 उत्तम आकिंचन्य धर्म 

जिस कारण राग-द्वेष उत्पन्न हुए उसका त्याग करों। लेकिन आकिंचन्य धर्म कहता है कि उन कारणों को को देखो जिनसे यह उत्पन्न हुए। उसे मिटने का प्रयास करों। आकिंचन्य आंखों से नहीं दिखता है। राग-द्वेष से दूर हट जाना ही आकिंचन्य धर्म है। 

उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म 

आत्मा का रमण करना उत्तम ब्रह्मचर्य है। रागोत्पादक साधन होने पर भी उन सबसे दूर होकर आत्मोन्मुखी बने रहना ही उत्तम ब्रह्मचर्य है। जब किसी वस्तु को भोगेगो तो बिना मिटाए नहीं भोग सकते। उसे मिटाना होगा। सत्य का कभी नाश नहीं होता और असत्य का उत्पाद नहीं होता।

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