Exclusive: लाल इमली: सीएम की घोषणा के बाद मिल चलने की उम्मीदों को लगे पंख, मजदूर बोले- पहले भी हो चुका ऐसा वादा

Exclusive: लाल इमली: सीएम की घोषणा के बाद मिल चलने की उम्मीदों को लगे पंख, मजदूर बोले- पहले भी हो चुका ऐसा वादा

कानपुर, मनोज त्रिपाठी। लाल इमली ने अपने ऊलेन उत्पादों की गुणवत्ता से कानपुर को नई पहचान और नाम देकर देश-दुनिया में मशहूर कर दिया था। मिल का लाल ईंटों से बना भवन आज भी शहर की समृद्ध औद्योगिक विरासत की गौरव गाथा सुनाता नजर आता है। यह अलग बात है कि मशीनें सालों से बंद और समय बताने वाली घड़ी रुकी पड़ी है। 

तमाम मजदूर आंदोलन करते-करते दम तोड़ चुके हैं, तो कुछ परिवार का पेट भरने के लिए मिल के आसपास कपड़े बेचने लगे हैं। यह समय की विडंबना ही है कि जब मिल चलाने की तमाम कोशिशें दम तोड़ गईं तो दो साल पहले भवन को फसाड लाइट से जगमग कर दिया गया। इससे युवाओं को सेल्फी और रील बनाने का बढ़िया ठिकाना मिल गया है।           
 
लाल इमली मिल की स्थापना वर्ष 1876 में हुई थी। उस समय इसका नाम कॉनपोरे वूलेन मिल्स था। इसी के बाद शहर में औद्योगिक क्रांति हुई। कानपुर को पूर्व के मैनचेस्टर का खिताब मिला। बताते हैं मिल के स्थान पर इमली का विशालकाय पेड़ था, जिसकी फलियां लाल रंग की होती थीं। 

इसी से ‘लाल इमली’ नाम पड़ा और अपने ऊलेन उत्पादों की दम पर जल्दी ही यह नाम ग्लोबल ब्रांड बन गया। पूरी दुनिया यहां के बने शाल, लोई, कंबल और गर्म सूट के कपड़ों की दीवानी हो गई। आस्ट्रेलिया की मोरिनो भेड़ के बाल से बनने वाली वूल से निर्मित यहां के कंबल, लोई, मोजे, मफलर, टोपी व कपड़े इतने गर्म होते थे कि कड़ाके की ठंड में इन्हें पहनने पर लोगों का पसीना छूट जाता था। 

लेकिन धीरे-धीरे कानपुर का औद्योगिक स्वरूप बिगड़ा। कपड़ा मिलें बंद होने लगीं तो लाल इमली को भी नजर लग गई।  मशीनें ठप होने लगीं। मिल बंदी के रास्ते की तरफ बढ़ने लगी। हालांकि जान फूंकने की कई बार कोशिश की गई। 2001 में सरकार ने 211 करोड़ रुपये का बजट दिया। 2005 में 47 करोड़ रुपये मिले। 

2011 में 338 करोड़ रुपये आवंटित करके मिले को चलाने की कोशिश की गई। लेकिन हालात में सुधार नहीं हो सका। नीति आयोग ने लाल इमली को बंद करने का सुझाव दे दिया। लोक उद्यम विभाग ने भी अस्तित्व समाप्त करने की हामी भर दी। अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लाल इमली के पुनरुद्धार का बीड़ा उठाया है। 

उनकी छवि और कार्यशैली को देखते हुए मजदूरों में विश्वास जागा है कि मिल फिर से खुल सकती है। लेकिन बंदी के जख्म इतने गहरे हैं कि तमाम मजदूरों का कहना है कि पहले भी कई चुनावों के समय लाल इमली को चलाने का वादा किया जा चुका है। ऐसे में आशंका है कि कहीं इस बार भी ठगे न रह जाएं।     

पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा और राजीव गांधी पहनते थे लोई 

लाल इमली कर्मचारी संघ के नेता आशीष पांडेय के अनुसार पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ही नहीं राजीव गांधी भी लाल इमली की लोई खासी पसंद करते थे। दोनों नेताओं को यहां की प्रसिद्ध टूस लोई व 60 नंबर लोई पहने कई तस्वीरों में देखा जा सकता है।

हूटर और मीनार की घड़ी लोगों को बताती थी समय

लाल इमली मिल ने सन 1950 के दशक में  स्वर्णिम दौर देखा है, उस समय यहां 10 हजार श्रमिक काम करते थे। 24 घंटे चलने वाली मिल में शिफ्ट के हिसाब से बजने वाले हूटर से लोग समय की जानकारी करने के साथ अपनी घड़ी मिलाते थे। मिले के मीनार पर लगी घड़ी राहगीरों को समय का ध्यान दिलाती थी। लेकिन आज यह घड़ी काफी समय से बंद पड़ी है।  

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