लखनऊ : हार्ट फेल्योर का खतरा हो सकता है कम, जीवन बचाने के लिए डॉ. अविनाश ने बताया तरीका

हार्ट अटैक का शिकार हुईं महिलाएं रहें सावधान, लक्षण समाप्त होने के बाद भी जांच होते रहना जरूरी

लखनऊ : हार्ट फेल्योर का खतरा हो सकता है कम, जीवन बचाने के लिए डॉ. अविनाश ने बताया तरीका

लखनऊ, अमृत विचार। समय रहते हार्ट अटैक के खतरे को पहचाना जा सकता है। जिससे अचानक होने वाली मृत्यु दर में कमी लाई जा सकती है। मौजूदा समय में ऐसे कई बायोमार्कर चिकित्सा क्षेत्र में मौजूद हैं। जिसके जरिए रक्त की जांच हो सकती है और यह पता लगाया जा सकता है कि किस व्यक्ति अथवा मरीज को हार्ट फेल्योर की संभावना अधिक है।

इतना ही नहीं मरीजों पर कौन सा इलाज कारगर होगा यह भी बताना अब आसान है। यानी कि ट्रीटमेंट कितना असरदार होगा, किस दिशा में होगा। यह जानकारी किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के Hod डॉ अविनाश अग्रवाल ने अमृत विचार संवाददाता वीरेंद्र पांडे के साथ हुई बातचीत के दौरान दी है।

प्रोफेसर अविनाश अग्रवाल ने बताया कि हाल ही मे प्रिसीजन मेडिसिन आधारित चिकित्सा को लेकर एक तीन दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई थी। जिसमें दिल की बीमारियों पर भी विशेषज्ञों ने चर्चा की थी।

इस दौरान दिल्ली स्थित सफदरजंग अस्पताल में कार्डियोलॉजी विभाग के हेड डॉक्टर संदीप बंसल और पांडिचेरी स्थित जवाहरलाल स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (जिपमेर) के डॉक्टर अनीस ने दिल की बीमारियों और उससे संबंधित इलाज की नवीन तकनीक पर जानकारी साझा की थी। साथ ही बीमारी के इलाज से संबंधित मानकों को भी बताया था।

प्रोफेसर अविनाश अग्रवाल की माने तो कार्यशाला में हुई चर्चा के दौरान यह बात निकलकर सामने आई थी कि मौजूदा समय में ऐसे कई बायो मार्कर हैं, जिससे हार्ट फेल्योर की जानकारी की जा सकती है। इससे लोगों की जान बच सकती है। जांच के माध्यम से यह भी बताया जा सकता है कि मरीज के इलाज में कौन सा ट्रीटमेंट ज्यादा कारगर साबित होगा और कौन सा कम।

लक्षण समाप्त होने के बाद भी निगरानी जरूरी

प्रोफेसर अविनाश की माने तो गर्भावस्था के दौरान और बाद में बहुत सारी महिलाओं को हार्ट फेल्योर का सामना करना पड़ता है। ऐसे में बहुत से मरीज इलाज के बाद जल्दी ठीक हो जाती हैं, लेकिन कई मरीजों को लंबे समय तक इलाज की जरूरत होती है। कई बार जांच और लक्षण के आधार पर डॉक्टर को लगता है कि मरीज ठीक हो गया है।

ऐसे में वह उनका इलाज बंद कर देते हैं, लेकिन कई बार ऐसे मरीजों में लक्षण यानी की बीमारी फिर से वापस आ जाती है, जिन्हें ठीक करना काफी कठिन होता है। इससे जीवन को खतरा भी होता है। ऐसे में गर्भावस्था के दौरान दिल की बीमारी झेल रही महिलाओं को सावधान रहने की जरूरत है। उनका इलाज कर रहे डॉक्टरों को भी सतर्क रहने की आवश्यकता है।

ऐसे मरीज की लंबे समय तक निगरानी जरूरी है, स्वस्थ होने के बाद भी उन्हें डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए और समय-समय पर जरूरी जांच करते रहना चाहिए। 1000 महिलाओं में एक महिला को गर्भावस्था के दौरान हार्ट अटैक पड़ने का खतरा अधिक रहता है।

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