समुद्री सुरक्षा की चुनौतियां
हिंद महासागर में चीन की बढ़ती आक्रामकता और लाल सागर में संवेदनशील स्थिति के बीच भारत के समुद्री हितों की रक्षा के लिए नौसेना की बढ़ती ताकत भारत की व्यापक समुद्री रणनीति का पूरक बन रही है। भू-राजनीतिक स्थितियों को देखते हुए, देश के सामरिक परिदृश्य की वजह से नौसेना की भूमिका बढ़ती जा रही है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नौसेना की बढ़ती सामर्थ्य को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
गुरुवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नौसेना कमांडरों के सम्मेलन में कहा कि भारत को एक समय समुद्री तटों से घिरा देश माना जाता था, लेकिन अब इसे भूमि सीमाओं के साथ एक द्वीपीय देश के रूप में देखा जाता है। उन्होंने आर्थिक, व्यापार, परिवहन और समग्र राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए एक सशक्त नौसैन्य क्षमता की आवश्यकता पर जोर दिया। वास्तव में भारत की समुद्री जागरूकता के विकास को लेकर जो सबक मिलते हैं, वो हमें देश की सुरक्षा और समृद्धि दोनों के लक्ष्य हासिल करने में भारतीय नौसेना की बढ़ती हुई केंद्रीय भूमिका बेहतर ढंग से स्वीकार करने का संकेत देते हैं।
हाल के वर्षों में, हिंद महासागर क्षेत्र में क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों की सैन्य उपस्थिति में वृद्धि देखी गई है। क्षेत्र में तीव्र भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और लगातार विकसित हो रही रणनीतिक स्थिति के साथ-साथ, हिंद-प्रशांत समुद्री क्षेत्र में विदेशी पक्षों की ओर से समुद्री डकैती, सशस्त्र डकैती, प्राकृतिक आपदाएं, जलवायु संबंधी मुद्दों जैसी विभिन्न गैर-पारंपरिक चुनौतियों में वृद्धि हुई है। इस बीच भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने साझेदारों के साथ सहयोगात्मक तरीके से जुड़ रहा है।
समुद्री सुरक्षा हिंद महासागर के तटीय देशों के साथ भारत के जुड़ाव का एक महत्वपूर्ण पहलू है। वर्तमान में विभिन्न औपचारिक और अनौपचारिक संरचनाओं के माध्यम से ऐसा किया जा रहा है। हिंद और प्रशांत महासागर में द्वीपों पर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। भारत की गतिशील और कार्रवाई उन्मुख, ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ ने विस्तारित भौगोलिक पहुंच और रणनीतिक सार के साथ विस्तारित पूर्वी पड़ोसियों के साथ भारत के सहयोग को बढ़ावा देने का एक दशक पूरा कर लिया है।
देश की समुद्री सुरक्षा को सशक्त करने के लिए भारतीय नौसेना तथा भारतीय तटरक्षक बल को और अधिक समन्वय की आवश्यकता है। साथ ही नौसेना में ‘आत्मनिर्भरता’ हासिल करने के तरीके तलाशने की जरूरत है। उम्मीद है नौसेना को ‘खरीदार’ से ‘निर्माता’ में बदलने का दृष्टिकोण 2047 तक इसे पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनाने में सहायक साबित होगा। हालांकि पिछले पांच वर्षों के दौरान नौसेना के आधुनिकीकरण बजट का दो-तिहाई से अधिक हिस्सा स्वदेशी खरीद पर खर्च किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप घरेलू रक्षा इकोसिस्टम का त्वरित विकास संभव हुआ है।