अल्मोड़ा: बापू ने सल्ट को कुमाऊं की बारदोली का दिया था नाम...
ब्रितानी हुकुमत ने गोलीबारी कर रक्तरंजित की थी खुमाड़ की धरती

बृजेश तिवारी, अल्मोड़ा अमृत विचार। कुमाऊं की पर्वत श्रंखलाएं अपने आंचल में प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना छिपाए जहां पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती हैं। वहीं इन पर्वत श्रंखलाओं ने ऐसे कवियों और वीर सपूतों को जन्म दिया है। जिनकी वीर गाथाएं आज भी घर घर बड़े बुजुर्ग नई पीढ़ी को बड़े उत्साह से सुनाया करते हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन में देश को आजाद कराने में वैसे तो पूरे कुमाऊं का विशेष योगदान रहा है। लेकिन अल्मोड़ा जनपद में स्थित सल्ट क्षेत्र की आजादी की लड़ाई में एक अलग पहचान है। आज भी सल्ट में आजादी की लड़ाई में शहीद हुए रणबांकुरों की वीर गाथाएं घर घर गाई जाती हैं।
यहां के लोगों में आजादी के अपना सब कुछ समर्पित कर देने की भावना के चलते बापू ने सल्ट को कुमाऊं की बारदोली का नाम दिया था। वर्ष 1921 में कुली बेगार प्रथा आंदोलन में यहां के लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। वहीं झन दिया लोगों कुली बेगारा, अब है गई गांधी अवतारा, सल्टियां वीरों की घर घर बाता, गोरा अंग्रेजा तू छोड़ि दे राजा जैसी जनवादी कवियों की रचनाओं ने यहां के लोगों को उत्साहित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
वर्ष 1930 में सल्ट की शांत वादियां सविनय अवज्ञा आंदोलन को लेकर छटपटाने लगी। सल्ट के लोगों ने गोरी सरकार के आदेशों को धत्ता बताते हुए समूचे कुमाऊं में आंदोलन का जो शंखनाद किया। उससे अंग्रेजों को इस बात का अहसास हो गया था कि अब यहां के लोग आजादी के लिए कुछ भी कर सकते हैं। इस आंदोलन में हरगोविंद पंत, पुरुषोत्तम उपाध्याय व लक्ष्मण सिंह अधिकारी जहां तीन महीनों तक मुरादाबाद में जेल की सलाखों के पीछे पड़े रहे।
वहीं फिरंगी सरकार से देश को आजाद कराने के लिए खुमाड़ निवासी पुरुषोत्तम उपाध्याय, पोखरी के कृष्ण सिंह ने रानीखेत में धारा 144 तोड़ी। पांच सितंबर 1942 का दिन कुमाऊं के लोग कैसे भूल सकते हैं। जब खुमाड़ में आयोजित क्रांतिकारियों की सभा में एसडीएम जानसन ने अंधाधुंध गोलीबारी कर अपनी हैवानियत का परिचय दिया। जिसमें क्रांतिकारी दो सगे भाई गंगा राम और खीमानंद मौके पर शहीद हो गए।
जबकि गोलीबारी में घायल चूड़ामणी और बहादुर सिंह ने भी कुछ दिनों बाद दम तोड़ दिया। आजादी के बाद पांच सितंबर उन्नीस सौ चौरासी में खुमाड़ में इन शहीदों की याद में एक शहीद स्मारक का निर्माण कराया गया। जिसके बाद से हर साल पांच सितंबर यहां शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। राजनीतिक दलों के नुमाइंदों के अलावा प्रशासनिक अधिकारियों और स्थानीय लोगों का जमावड़ा यहां लगता है और शहीदों को उनकी बरसी पर याद किया जाता है।