बरेली: एलायंस बिल्डरों की मुश्किल बढ़ी, अब एल्डिको सिटी की जांच शुरू
डीएम ने एडीएम प्रशासन, एसडीएम सदर और तहसीलदार को जांच का आदेश देकर 15 दिन में मांगी रिपोर्ट

बरेली, अमृत विचार। एलायंस रेजीडेंसी लिमिटेड और उससे जुड़ी कंपनियों की संपत्तियों को जब्त करने के बाद प्रशासन ने एल्डिको सिटी की भूमि की भी जांच शुरू हो गई है। नैनीताल रोड पर बिल्वा के पास बसाई गई एल्डिको सिटी में छह गाटा नंबरों की जमीन पर अवैध कब्जे और जाली दस्तावेज तैयार कराकर बैनामे करने की शिकायत पर डीएम ने एडीएम प्रशासन ऋतु पूनिया, एसडीएम सदर प्रत्यूष पांडेय और तहसीलदार सदर रामनयन सिंह को अभिलेखीय और स्थलीय जांच कराकर 15 दिन में रिपोर्ट देने का आदेश दिया है।
डीएम का आदेश मिलने के बाद एसडीएम सदर ने तहसीलदार सदर को आरोपों की प्राथमिकता में जांच कराकर एक सप्ताह में रिपोर्ट देने का आदेश दिया है। डीएम से की गई शिकायत में सियाराम मंडल ने आरोप लगाया था कि रमनदीप सिंह, अमनदीप सिंह और उनके पांच सहयोगियों ने एकराय होकर राजनीतिक संरक्षण में जमीन पर अवैध कब्जा किया है। कई बैनामे भी कराए हैं जिनका अधिकारियों से साठगांठ कर फर्जी तरीके से अमल दरामद कराया गया और बीडीए से नक्शा पास करा लिया गया।
आरोप है कि रमनदीप सिंह ने रेरा में भी रजिस्ट्रेशन कराकर अपने भांजे को एल्डिको सिटी का निदेशक बना दिया है। शिकायत में आरोप है कि रमनदीप सिंह ने एलायंस रेजिडेंसी लिमिटेड और कंपनी एल्डिको इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड प्रॉपर्टीज लिमिटेड के बीच एक संयुक्त उद्यम कर जमीन पर एल्डिको सिटी बसाई है। एल्डिको सिटी में स्टांप पर मकान बेचे जाने की बात भी सामने आई है। सियाराम ने शिकायत की गहनता से जांच कराकर दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की है।
सुल्तानपुर से सिफारिश करने आए विधायक तब शुरू कराई जांच
शिकायतकर्ता सियाराम मंडल ने अपनी जमीन को वापस लेने के लिए अपने परिचित सुल्तानपुर के एक विधायक काे बरेली बुलवाया और प्रशासन के अधिकारियों से सिफारिश कराई, तब जांच के आदेश जारी हुए। सियाराम मंडल ने छह महीने पहले भी अधिकारियों से शिकायत की थी लेकिन तब उनकी शिकायत को नजरंदाज कर दिया गया था।
वसीयत के जरिए जमीन पर जताया हक
टीबरीनाथ निवासी सियाराम मंडल की डीएम से की गई शिकायत के मुताबिक गांव बिल्वा में गाटा नंबर 476, 477, 506, 509, 512 और 513 की जमीन ठाकुर जगमोहन सिंह पुत्र उमराय सिंह के नाम थी। 19 सितंबर 1973 को जगमोहन की मृत्यु हो गई। उनका कोई वारिस नहीं था। वही उनकी सेवा करते थे जिससे खुश होकर जगमोहन सिंह ने मृत्यु से पहले ही सात मई 1973 को उनके नाम वसीयत कर दी थी। तब से वह आराजी पर बटाई में खेती कराते थे। उनके बटाईदार को भूमाफिया बिल्डरों ने मारपीट कर भगा दिया था।
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