बाराबंकी: ‘या वारिस-या हक’ की सदाओं के बीच निकली पालकी, उमड़ा अकीदतमंदों का सैलाब

देवा, बाराबंकी। कौमी एकता व भाईचारे का संदेश देकर लोगों को एकता के सूत्र में पिरोने वाले महान सूफी संत हाजी वारिस अली शाह के पिता सैय्यद कुर्बान अली शाह दादा मियां का परंपरागत तरीके से कुल शरीफ कदीमी रवायतों के बीच पूरी शानों-शौकत के साथ संपन्न हुआ। इस मौके पर शुक्रवार को अकीदतमंदों का …
देवा, बाराबंकी। कौमी एकता व भाईचारे का संदेश देकर लोगों को एकता के सूत्र में पिरोने वाले महान सूफी संत हाजी वारिस अली शाह के पिता सैय्यद कुर्बान अली शाह दादा मियां का परंपरागत तरीके से कुल शरीफ कदीमी रवायतों के बीच पूरी शानों-शौकत के साथ संपन्न हुआ। इस मौके पर शुक्रवार को अकीदतमंदों का सैलाब उमड़ पड़ा। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के साथ निकली पालकी यात्रा को देखने व छूने के लिए जायरीन में होड़ मच गई। या वारिस-हक वारिस की सदाओं के बीच लोगों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।
हाजी सैय्यद अली द्वारा सन् 1879 ई. से शुरू इस परंपरा की कड़ी में शुक्रवार को सैय्यद कुर्बान अली शाह की दरगाह पर कुल शरीफ की परंपरा हजारों अकीदत मंदो के बीच पूरी हुई। इस उर्स के मौके पर हाजी सैय्यद वारिस अली शाह जिस पीनस पर बैठकर दादा मियां के आस्ताने पर जाकर कुल शरीफ की रस्म अदा करते थे, उसी रस्म के अनुसार सोमवार को दादा मिंया दरगाह के वर्तमान सज्जादा नशीन सैय्यद उस्मान गनी शाह पीनस पर बैठकर वारिस के आस्ताने पर हाजिरी देते हुए दादा मियां की दरगाह पर हजारों अकीदत मंदों के बीच पहुंचे। उस समय पाक वारिस के हजारों दीवाने या वारिस-हक वारिस के नारे बुलंद कर रहे थे।
इस दौरान पालकी को कंधा देने वालों की होड़ सी मची थी। पालकी को चूमने के लिए सड़क के दोनों ओर जायरीन का तांता लगा रहा। ‘जो रब है वही राम है’ का संदेश देने वाले हाजी वारिस अली शाह के पिता सैय्यद कुर्बान अली शाह (दादा मियां) के आस्ताने शरीफ पर पुरानी परंपरा के अनुरूप सबसे पहले महफिले कव्वाली के साथ कुल शरीफ आयोजित हुआ। पालकी के साथ बड़ी संख्या में अकीदतमंद पैदल चल रहे थे। हर कोई उतावला था कि वह पालकी में कैसे कंधा दे।
पालकी का काफिला सबसे पहले वारिस शाह के आस्ताने शरीफ पहुंचा। कुछ क्षण गुजरने के बाद काफिला यहां से नुमाइश मैदान की ओर चल पड़ा। कव्वाली और कुरान शरीफ की सूरतों की तिलावत से सारा माहौल दादा मियां और वारिस पाक हो गया। वारिस पाक के दीवानाें के हाथों शिरनी (प्रसाद) लेकर फातिहा स्थल पर पहुंचाया जा रहा था। परंपरा के अनुसार सोमवार को दादा मियां का कुल शरीफ शानों शौकत से संपन्न हुआ।
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