हल्द्वानी: लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए कार्य करने वाली माधुरी ने देवभूमि की माटी का जताया आभार

हल्द्वानी, अमृत विचार। इंसान को कर्म करते रहना चाहिए, फल तो देर सवेर मिलता ही है। अपनी माटी के लिए किए गए कर्तव्य से बढ़कर और क्या हो सकता है। अपनी संस्कृति, अपनी बोली, अपनी मातृभूमि को कभी नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि इसी से आपके व्यक्तित्व की खूबसूरती बढ़ती है और यही आपकी पहचान है। …
हल्द्वानी, अमृत विचार। इंसान को कर्म करते रहना चाहिए, फल तो देर सवेर मिलता ही है। अपनी माटी के लिए किए गए कर्तव्य से बढ़कर और क्या हो सकता है। अपनी संस्कृति, अपनी बोली, अपनी मातृभूमि को कभी नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि इसी से आपके व्यक्तित्व की खूबसूरती बढ़ती है और यही आपकी पहचान है।
पद्मश्री के लिए चयनित माधुरी बड़थ्वाल का कुछ ऐसा ही मानना है। केंद्र सरकार से मिले अपने सम्मान को वह देवभूमि के लोगों को समर्पित करते हुए कहती हैं कि मुझे बाबा बद्रीनाथ और केदारनाथ का आशीर्वाद मिला है। जिसकी बदौलत आज युवा उनकी सीख को अपनाने के लिए आगे आ रही है।
दून निवासी माधुरी बड़थ्वाल कहती हैं कि जीवन में महिला रुढ़िवादी परंपरा को तोड़ना आसान नहीं था, लेकिन पिता ने शिक्षा के लिए हमेशा साथ दिया। वर्ष 1969 से 1979 तक लैंसडोन के इंटर कॉलेज में संगीत अध्यापिका बनीं और इसके बाद वर्ष 1979 से 2010 तक नजीबाबाद आकाशवाणी केंद्र में पहली महिला संगीत निर्देशिका के तौर पर काम किया।
रिटायर होने के बाद उन्होंने पारंपरिक गीतों और लोकनृत्यों के संरक्षण के लिए उन्होंने मुहिम छेड़ी, जिसके अंतर्गत उन्होंने निशुल्क रूप से महिलाओं को लोकगीतों, नृत्य और वादन का प्रशिक्षण दिया। धीरे-धीरे काफिला जुड़ता गया और उनकी प्रेरणा से आज हजारों महिलाएं अपनी संस्कृति को बचाने के लिए काम कर रही हैं। माधुरी को नारी शक्ति पुरस्कार, उत्तराखंड रत्न, उत्तराखंड भूषण जैसे अनेक सम्मानों से नवाजा जा चुका है।
वैवाहिक कार्यक्रमों में डीजे की जगह मांगल गीतों पर दिया जोर
वैवाहिक कार्यक्रमों में माधुरी ने डीजे की जगह मांगल गीतों के गायन पर जोर दिया। इसकी शुरुआत उन्होंने अपने नाते-रिश्तेदार, जान-पहचान के लोगों को जागरूक करने से किया। उन्होंने कई महिलाओं की टीम बनाई, जो महिलाएं मांगल गीतों का गायन करने लगीं। इससे महिलाएं समाज को जागरूक करने के साथ ही स्वरोजगार से भी जुड़ीं।
जब तक जीवन रहेगा तब तक देवभूमि की करेंगी सेवा
माधुरी का कहना है कि मैंने सम्मान पाने के लिए यह राह नहीं चुनी। बल्कि यह मेरा कर्तव्य है इस देवभूमि के प्रति, जहां मैंने जन्म लिया। वह कहती हैं कि जीवन की अंतिम सांस तक अपनी मातृभूमि की सेवा करेंगी और नई पीढ़ी को लोक विरासत की भेंट देंगी।