चुनावी मुद्दा : यह रहा रामपुर रियासत की राजनीतिक ‘खेल’, विचारधारा कभी नहीं खाई ‘मेल’

चुनावी मुद्दा : यह रहा रामपुर रियासत की राजनीतिक ‘खेल’, विचारधारा कभी नहीं खाई ‘मेल’

अखिलेश शर्मा/अमृत विचार। राजनीति भी ऐसा खेल है जो अपनों के बीच भी मतभेद कायम करा देती है, या फिर विचारधाराएं बदलवा देती है। रामपुर रियासत के वंशजों की राजनीति के भी ऐसे तमाम किस्से हैं, जोकि आजादी के बाद से अब तक देखने को मिले हैं। इनमें कभी भाई-भाई के बीच विचारधारा नहीं मिलती …

अखिलेश शर्मा/अमृत विचार। राजनीति भी ऐसा खेल है जो अपनों के बीच भी मतभेद कायम करा देती है, या फिर विचारधाराएं बदलवा देती है। रामपुर रियासत के वंशजों की राजनीति के भी ऐसे तमाम किस्से हैं, जोकि आजादी के बाद से अब तक देखने को मिले हैं। इनमें कभी भाई-भाई के बीच विचारधारा नहीं मिलती थी, तो कभी देवर-भाभी राजनीति के अखाड़े में आमने सामने आ गए थे। यही नहीं एक बार तो मां-बेटे को भी विचारधारा की लड़ाई ने चुनावी मैदान में लाकर खड़ा कर दिया था। इस बार के चुनाव में पिता-पुत्र की विचारधाराएं बदली हुई नजर आ रही हैं।

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रामपुर रियासत के आखिरी नवाब रजा अली खां की मृत्यु 1966 में 57 साल की उम्र में हुई थी। 1949 में रियासत का विलय भारत गणतंत्र में हो गया था। इसके बाद से ही नवाब परिवार का राजनीति में अहम योगदान रहा। नवाब रजा अली खां के बड़े बेटे नवाब मुर्तजा अली खां कई चुनाव लड़े थे। एक बार तो 1969-1974 के विधान सभा चुनाव में नवाब मुर्तजा अली खां के मुकाबले उनकी मां रफत जमानी बेगम भी मैदान में उतरीं, हालांकि उस दौरान नवाब मुर्तजा अली खां की जीत हुई थी, मां रफत जमानी को बेटे के हाथ शिकस्त मिली थी। मां-बेटे के बीच यह राजनीतिक मुकाबला तब पूरे देश की राजनीति में चर्चा में रहा था। इससे पहले एक बार नवाब रजा अली खां के सामने भी उनके छोटे बेटे नवाब जुल्फिकार अली खां उर्फ मिक्की मियां सांसद बने थे। हालांकि तब मिक्की मियां से उनके बड़े भाई नवाब मुर्तजा अली खां की विचारधारा कभी मेल नहीं खाई।

शायद इसीलिए मिक्की मियां पहले जुल्फिकार मंजिल में रहने लगे। बाद में उन्होंने नूरमहल में अपना ठिकाना बनाया। मिक्की मियां सात बार चुनाव लड़े पांच बार सांसद चुने गए थे। मिक्की मियां के 1991 में एक सड़क हादसे में निधन के बाद राजनीति की पूरी कमान उनकी पत्नी बेगम नूरबानो के हाथ आ गई। इस बीच नूरबानो-मिक्की मियां के बेटे नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां भी राजनीति की पारी खेलने को मैदान में कूद चुके थे। नवेद मियां पांच बार विधायक रहे, एक बार राज्यमंत्री भी रहे हैं। लेकिन एक दौर वो भी आया जब नूरमहल में एक ही छत के नीचे रहते हुए मां नूरबानो और बेटे नवेद मियां की विचारधाराएं बदल गईं थीं।

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नवेद मियां ने कांग्रेस छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया था। एक विधायक भी चुने गए। फिर समाजवादी पार्टी में भी रहे और स्वार-टांडा से विधायक बने थे। बिलासपुर सीट भी उनकी कर्मभूमि रह चुकी है। लेकिन उनकी मां नूरबानो हमेशा कांग्रेस में ही रहकर राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में सक्रिय रहीं। 2017 में हुए 17 वीं विधान सभा के चुनाव में नवेद मियां स्वार टांडा सीट से चुनाव हार गए थे। 17वीं विधान सभा में नवाब खानदान का कोई प्रतिनिधित्व नहीं रहा।

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2022 के विधान सभा चुनाव में नवेद मियां एक बार फिर कांग्रेस से शहर विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी हैं। मां नूरबानो उनके साथ हैं। लेकिन नवेद मियां के छोटे बेटे नवाबजादा हैदर अली खां उर्फ हमजा मियां पहले कांग्रेस से स्वार टांडा से प्रत्याशी घोषित हुए थे। लेकिन बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी, भाजपा के सहयोगी अपना दल एस में शामिल होकर टांडा स्वार से प्रत्याशी घोषित किए गए हैं। इस बार नवेद मियां कांग्रेस की विचारधारा के साथ हैं, तो बेटा अपनी विचारधारा बदलकर भाजपा के सहयोगी दल से मैदान में डटे हैं।