मुरादाबाद : मिट्टी की ढांग में दबने से महिला की मौत, बच्चे घायल

मुरादाबाद/पाकबड़ा/अमृत विचार। सिस्टम की अदूरदर्शिता की शिकार एक महिला मंगलवार देर रात काल के गाल में समा गई। मिटट्टी की ढांग में दबने के कारण गंभीर रूप से घायल महिला ने उपचार के दौरान जिला अस्पताल में दम तोड़ दिया। महिला की अकाल मौत से न सिर्फ दो मासूम असमय अनाथ हुए, बल्कि सिस्टम की …
मुरादाबाद/पाकबड़ा/अमृत विचार। सिस्टम की अदूरदर्शिता की शिकार एक महिला मंगलवार देर रात काल के गाल में समा गई। मिटट्टी की ढांग में दबने के कारण गंभीर रूप से घायल महिला ने उपचार के दौरान जिला अस्पताल में दम तोड़ दिया। महिला की अकाल मौत से न सिर्फ दो मासूम असमय अनाथ हुए, बल्कि सिस्टम की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में खड़ी हो गई। प्रकरण प्रकाश में आने के बाद प्रशासनिक अमला लोमहर्षक घटना की लीपापोती करने में जुटा है। दिल कचोटने वाली घटना पाकबड़ा थाना क्षेत्र की है।
बिलारी तहसील क्षेत्र में स्थित करनपुर गांव का रहने वाला रमेश मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करता था। गरीबी व मुफलिसी से जंग लड़ रहे मेहनतकश रमेश ने करीब 14 वर्ष पहले आठ सौ किमी दूर रहने वाली बिहार की बीना का वरण पत्नी रूप में किया। वक्त बीता और दंपती दो बच्चों के मां-बाप बने। बड़ा बेटा विनय 12 साल व छोटा पुत्र संदीप महज छह साल का है। दंपती जिस मकान में जीवन यापन करते हैं, वह आज भी कच्चा है। मिट्टी के फर्स का महिला प्रतिदिन लेपन करती थी। तब वह रहने लायक होता था।
मंगलवार को दोपहर बाद करीब साढ़े तीन बजे बीना दोनों बेटों को साथ लेकर गांव के किनारे स्थित पोखरे पर गई। मां व दोनों बच्चे तालाब से मिट्टी की खोदाई में जुटे। तभी अचानक मिट्टी की ढांग तीनों के उपर गिर पड़ी। तीनों ढांग में दब गए। चीख पुकार सुनकर मौके पर पहुंचे ग्रामीणों ने मां-बेटो को मिट्टी की भारी खेप से बाहर निकाला। आनन फानन में दोनों बच्चों व उनकी मां को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। चिकित्सकों ने महिला की हालत गंभीर बताई। जबकि दोनों बच्चे खतरे से बाहर हैं। जिला अस्पताल में महिला का उपचार शुरु हुआ। देर रात रमेश के होश तब फाख्ता हो गए, जब चिकित्सकों ने उसकी पत्नी बीना को मृत करार दिया।
भूमिहीन रमेश पत्नी विहीन भी हो गया। उसके दोनों लख्तेजिगर के सिर से मां का साया सदा के लिए उठ गया। अब सवाल यह कि बीना की मौत का असल गुनहगार कौन है? पड़ताल में पता चला कि रमेश प्रधानमंत्री आवास से आज तक वंचित है। तब सवाल उठना तो लाजिमी है कि वह सिस्टम कहां सो रहा है, जिसके कंधे पर पात्रों की पहचान व सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने की जिम्मेदारी है? छानबीन में पता चला कि हल्का लेखपाल बुधवार को रमेश के घर पहुंचे तो थे, लेकिन उनकी जुबां से ऐसा कोई आश्वासन पीड़ित कुनबे को नहीं मिला, जिससे कि रमेश व उसके बच्चों का गम कम हो सके। घटना के बावत पूछताछ कर जिम्मेदारों ने पीड़ितों से किनारा कस लिया। प्रशासनिक उच्चाधिकारी हल्का लेखपाल से भी दो कदम आगे निकल गए। उन्होंने घटना की जानकारी होने से ही इन्कार कर दिया। गरीबी के दलदल में फंसी बीना की मौत के 24 घंटे बाद भी अफसरों की नींद नहीं टूटी। बीना के बेटों की करुण पुकार नक्कारखाने में तूती की आवाज बन गई।
रमेश मेहनत मजदूरी कर बच्चों का पेट पालता है। सालों से रह रहे हैं टूटे हुए मकान में अभी तक नहीं मिला कोई भी आवास टूटे हुए मकान में जिंदगी गुजर बसर कर रहा गरीब परिवार। प्रशासन की ओर से अभी तक कोई भी आवास नहीं दिया गया है। अभी तक इन की ओर से कोई भी आवास के लिए आवेदन नहीं किया गया है मेरे कार्यकाल में अभी कोई ने आवास नहीं मिला है।-विनोद कुमार प्रधान पति ग्राम करनपुर
हम लोग सूचना मिलने पर गांव में गए थे। घटना की रिपोर्ट तहसीलदार को मौखिक रूप से दी गई है। अधिकारियो के दिशानिर्देशों का पालन होगा। -मोइनुद्दीन, लेखपाल करनपुर
महिला की मौत की सूचना मिली है। उच्चाधिकारियों से विचार विमर्श बाद जो भी न्याय संगत होगा, पीड़ित परिवार को मदद की जाएगी। -घनश्याम सिंह, एसडीएम बिलारी।
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