ये कैसा कानून! क्रूरता की सारी हदें पार, बेटी के हाथों मां को दिलाई गई फांसी
तेहरान। ईरान में एक बेटी को जबरन उसकी मां को मौत की सजा देने के लिए मजबूर किया गया। इस महिला का नाम मरियम करीमी बताया जा रहा है और 13 साल पहले पति की जान लेने के जुर्म में उसे मौत की सजा सुनाई गई थी। इस महिला ने अपने उस पति की हत्या …
तेहरान। ईरान में एक बेटी को जबरन उसकी मां को मौत की सजा देने के लिए मजबूर किया गया। इस महिला का नाम मरियम करीमी बताया जा रहा है और 13 साल पहले पति की जान लेने के जुर्म में उसे मौत की सजा सुनाई गई थी। इस महिला ने अपने उस पति की हत्या कर दी थी जो उसे मारता-पीटता था और उस पर अत्याचार करता था।
बताया जा रहा है कि इस महिला का पति उसे तलाक देने पर भी राजी नहीं था। महिला के पिता इब्राहिम ने कई बार उसे बेटी को तलाक देने के लिए राजी करने की कोशिशें की लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ। इसके बाद पिता ने अपनी बेटी की मदद की ताकि वह अपने पति की जान ले सके। दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन 6 साल की मासूम बेटी को अपने दादा-दादी के साथ रहने के लिए मजबूर होना पड़ा।
दादा-दादी ने अपनी पोती को बता दिया था कि अब वह अनाथ हो चुकी है। जिस समय मरियम को फांसी पर चढ़ना था, उसके कुछ हफ्तों पहले ही उसके सामने वह सच आया जो उससे छिपाकर रखा गया था। बेटी की उम्र अब 19 साल है। इसी साल 13 मार्च को बेटी ने ईरान के राश्त सेंट्रल जेल में अपनी मां को फांसी की सजा पर चढ़ाया।
बेटी ने मरियम के पैर के नीचे से उस कुर्सी को खींच लिया था जिस पर वह खड़ी थी। ईरान इंटरनेशनल टीवी की रिपोर्ट के अनुसार बेटी ने मां को माफ करने से या फिर दिया (Blood Money) को स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया था। मरियम पर बदला लेने का आरोप लगा था जिसे ईरान में किसास के नाम जानते हैं। किसास के तहत पीड़ित के किसी बच्चे को फांसी की सजा के समय मौजूद रहना पड़ता है और उन्हें खुद इस सजा को देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
ईरान के मानवाधिकार संगठनों ने इसकी निंदा की है। उनका कहना है कि मरियम की बेटी से सच छिपाकर रखा गया। जब यह सामने आया तो वह अपनी मां से नफरत करने लगी थी। उन्होंने किसास को भी अमानवीय करार दिया है। साल 2019 में किसास के तहत 225 लोगों को मौत की सजा दी गई थी। इनमें से 68 को जेल में पूरा किया गया जबकि 4 मामले ऐसे थे जिनमें किसी बच्चे के हाथ से सजा दिलवाई गई थी। इन चारों मामलों में ही बच्चे नाबालिग थे।
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