पीलीभीत: तीन और नेपाली हाथियों ने पीटीआर में दी दस्तक, वनकर्मियों की खोजबीन जारी

पीलीभीत: तीन और नेपाली हाथियों ने पीटीआर में दी दस्तक, वनकर्मियों की खोजबीन जारी

पीलीभीत, अमृत विचार। पीलीभीत टाइगर रिजर्व में करीब ढाई माह से डेरा जमाए दो नेपाली हाथी अभी वापस गए नहीं है कि इस बीच तीन अन्य नेपाली हाथियों ने टाइगर रिजर्व में दस्तक दे दी है। फिलहाल शुरूआत में तो इन तीनों हाथियों के पगमार्क देखे गए, लेकिन अब इनकी लोकेशन ढूंढे नहीं मिल रही है।

फिलहाल वनकर्मियों की टीम इनकी खोजबीन में जुटी हुई हैं। इसके पीछे वजह को लेकर बात करें तो पीटीआर का अनुकूल वातावरण और बिछड़े साथियों की तलाश करना माना जा रहा है।

नेपाल की शुक्ला फांटा सेंचुरी की सीमा पीलीभीत टाइगर रिजर्व से सटी हुई है। पिछले कई सालों से नेपाली हाथी पड़ोसी देश नेपाल और पीटीआर से सटी हुई लखीमपुर खीरी की किशनपुर सेंचुरी से आते जाते रहते हैं। करीब ढाई माह पूर्व पांच नेपाली हाथियों का झुंड टाइगर रिजर्व आया था।

कुछ दिन यहां के जंगल में रहने के बाद हाथियों का झुंड नेपाल की ओर वापस जा रहा था। इसी बीच सुरई रेंज के नजदीक टाइगर रिजर्व के जंगल क्षेत्र में ही एक बाघ ने हाथियों के झुंड पर हमला कर दिया था। जिससे हाथियों का झुंड दो हिस्सों में बंट गया था। 

तीन हाथी वापसी कर गए जबकि दो हाथी टाइगर रिजर्व क्षेत्र में ही रह गए। यह दोनों हाथी पिछले करीब ढाई माह से पीटीआर की माला रेंज में ही डेरा जमाए हुए हैं। माह के शुरूआती दौर में दोनों नेपाली हाथी दिन में जंगल में ही छिपे रहते थे, लेकिन अंधेरा होते ही आबादी इलाकों में पहुंचकर कृषि फसलों को नुकसान पहुंचा रहे थे।

हाथियों को आबादी क्षेत्रों में घुसने से रोकने के लिए निगरानी टीमें भी लगाई थी, मगर रात में अंधेरा होने के चलते टीमें भी नाकाम हो रही थी। पिछले 06 मार्च को माला रेंज में डेरा जमाए हाथियों को नेपाल की ओर खदेड़ने के लिए अभियान चलाया गया।

 करीब 40 वनकर्मियों की टीम हाथियों को खदेड़ती हुई नेपाल सीमा से सटे महोफ रेंज के मृगनयनी ग्रास लैंड तक ले भी गई थी, लेकिन उसी रात हाथी पुन: वापस माला रेंज में आ पहुंचे। हालांकि तबसे दोनों नेपाली हाथी जंगल में विचरण कर रहे हैं। इधर टाइगर रिजर्व प्रशासन दोनों नेपाली हाथियों के उत्पात से पहले से ही परेशान चल रहा था कि इस बीच तीन अन्य नेपाली हाथियों ने भी टाइगर रिजर्व में दस्तक दे दी है।

वन अफसरों के मुताबिक तीनों नेपाली हाथियों के पगमार्क देखे गए थे। तबसे लगातार उनकी खोजबीन भी चल रही है, मगर उसके बाद से इन तीनों हाथियों की कोई लोकेशन नहीं मिल रही है। वन अफसरों का कहना कि जंगल में इन दिनों पतझड़ चल रहा है। ऐसे में पगमार्क नहीं मिल पा रहे हैं।

माना जा रहा है कि यह तीनों नेपाली हाथी उसी झुंड का हिस्सा है, जो बाघ के हमले के दौरान अलग-अलग हो गया था और अब यह बिछड़े दो साथियों की तलाश में ही यहां आए हैं। इस संबंध में पीटीआर के डिप्टी डायरेक्टर मनीष सिंह ने बताया कि तीन हाथियों के पगमार्क मिले थे, मगर उसके बाद से उनकी कोई लोकेशन नहीं मिली है। खोजबीन की जा रही है। टीमों को भी सतर्क किया गया है।

तो इस वजह से यहां आते हैं नेपाली हाथी
पीटीआर के डिप्टी डायरेक्टर मनीष सिंह के अनुसार हाथी झुंड में रहना पसंद करता है। अपने साथियों से बिछड़ने के बाद वह उनकी तलाश में ही पीटीआर की अलग-अलग रेंजों में विचरण कर रहे हैं। बार-बार खदेड़ने के बाद भी पीटीआर की तरफ नेपाली हाथियों की वापसी के पीछे इसे भी अहम वजह हो सकती है।

एक अन्य वजह ये भी मानी जा रही है कि नेपाल की शुक्ला फांटा सेंचुरी की अपेक्षा पीटीआर का जंगल हाथियों के लिए काफी मुफीद है। यहां स्वच्छंद विचरण के अलावा खाने-पीने की खासी उपलब्धता है। हाथियों का सबसे प्रिय आहार रोहिणी (सिंदूर) के पेड़ पीटीआर में सर्वाधिक हैं। 

ये भी नेपाली हाथियों के बार-बार पीटीआर में दस्तक देने की वजह हो सकती हैं। इसके अलावा जब जंगल के बाहर नेपाली हाथी पहुंचते हैं तो गन्ने को अपना प्रमुख आहार बनाते हैं। जिसके चलते जंगल की सीमा सटे ग्रामीण इलाकों में खेतों की तरफ रुख कर जा रहे हैं।

फिलहाल नेपाली हाथियों के पीटीआर में डेरा जमाए होने को लेकर साथी हाथियों की तलाश और खान-पान का मुफीद वातारण माना जा रहा है। ऐसे में पीटीआर का जंगल नेपाली हाथियों के आवागमन में केंद्र बिंदु माना जाता है।

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