Bareilly: राष्ट्रीय पहचान बनाना महिला स्वयं सहायता समूह का अगला कदम

जिले में हैं 13 हजार से ज्यादा महिला स्वयं सहायता समूह

Bareilly: राष्ट्रीय पहचान बनाना महिला स्वयं सहायता समूह का अगला कदम
प्रतीकात्मक फोटो

बरेली, अमृत विचार। जिले स्तर पर बेहतर काम करने के बाद अधिकांश महिला स्वयं सहायता समूह अब प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर बरेली का नाम रोशन करना चाहतीं हैं। इसके लिए वे अधिक मेहनत भी कर रही हैं। महिला स्वयं सहायता समूह का कहना है कि राष्ट्रीय पहचान प्राप्त करने का उद्देश्य सिर्फ अधिक मुनाफा कमाना नहीं है बल्कि वे अपने जिले का नाम रोशन करने के साथ वृहद स्तर पर जरूरतमंद महिलाओं की मदद करना चाहती हैं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार जिले के 15 ब्लॉकों की 1172 ग्राम पंचायत में करीब 13 हजार से अधिक महिला स्वयं सहायता समूह सक्रिय है, जिनमें करीब एक लाख 40 हजार महिलाएं शामिल हैं। इनमें नगर क्षेत्र में करीब 2500 समूह है, जिनमें करीब 25 हजार महिला सदस्य हैं जो सामान्यत: अचार, मुरब्बा, पापड़ और सिलाई, बुनाई, कृषि उत्पाद, बेंत के फर्नीचर, च्वयनप्राश जैसे कई उत्पाद तैयार करती हैं। जिले स्तर पर स्थापित होने के बाद अब इनका अपना लक्ष्य प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने का है।

मार्गदर्शन न मिलना बन रहा रास्ते का रोड़ा
महिला स्वयं सहायता समूह को सही दिशा दिखाने अन्य मार्केटिंग परामर्श के लिए शासन ने एनआरएलएम के लिए जिला मिशन प्रबंधक को जिम्मेदारी दे रखी है। हालांकि अधिकांश सहायता समूह का मानना है कि उचित मार्गदर्शन व प्रचार-प्रसार से उन्हें राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर की पहचान नहीं मिल पा रहीं है। कुछ साल पहले स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा बनाएं जा रहे उत्पादों के उचित मार्केटिंग के लिए प्रशासन ने एमबीए विद्यार्थियों को इंटर्न के तौर पर लगाया भी लेकिन कुछ समय बाद वो भी सफल नहीं रहा।

क्या बोलीं स्वयं सहायता समूह की महिलाएं

केस 1- 
कालीबाड़ी स्थित मां शक्ति महिला स्वयं सहायता समूह बेंत को डिजाइनर फर्नीचर में बनाकर बिक्री करता है। समूह अध्यक्ष नीलम ने बताया कि समूह में करीब दस महिला सदस्य है, जो विभिन्न जगहों में उत्पाद की बिक्री करती हैं। नीलम का कहना है कि लगातार चार साल से समूह जिले में पहचान बना चुका है। महिलाएं की मेहनत से लगातार बैंक का ऋण भी चुकाया जा रहा है, लेकिन व्यापार को प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने को लेकर रास्ता नजर नहीं आ रहा है। उनका कहना है कि ऐसा कर हम अपने उत्पाद को राष्ट्रीय पहचान दिलाने के साथ अन्य जरूरतमंद महिलाओं को सशक्त बना सकते है।

केस 2-
 फरीदपुर शहरी क्षेत्र की अनुभवी महिला स्वयं सहायता समूह च्यवनप्राश बनाने का कार्य कर रहा है। गुणवत्ता बनाए रखने के लिए महिलाएं सामान इकट्ठा करने से लेकर इसे बनाने और पैक करने का कार्य भी स्वयं करती हैं। जिला स्तर पर पहचान मिलने के बाद अब इस उत्पाद को राष्ट्रीय पहचान दिलाना चुनौती बन रहा है। अध्यक्ष प्रमिला बताती है कि च्यवनप्राश की गुणवत्ता जांच, आयुर्वेदिक विभाग से लाइसेंस प्रक्रिया महंगी व जटिल है। इसके बाद भी जिले से बाहर उत्पाद नहीं पहुंच पा रहा है। उनका कहना है कि उत्पाद व समूह को राष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए आवश्यक मार्गदर्शन और सहायता की अभी कमी है।

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