लखनऊः ''वेट लॉस'' कर अपना ''फैट'' सुधार रहीं कंपनियां, जानें क्या है खेल
FMCG उत्पादों का वजन घटाकर आमजन की जेब हल्की कर रही हैं कंपनियां। मात्रा कम होने से ग्राहक को रोजमर्रा के उसी उत्पाद की करनी पड़ती है बार-बार खरीदारी
नीरज मिश्र, लखनऊ, अमृत विचार: सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे। यह कहावत महंगाई के इस दौर में एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) उत्पादों की बिक्री पर पूरी तरह से खरी उतर रही हैं। आमजन की जेब हल्की कर रही इन कंपनियों ने ऐसे चक्रव्यूह की रचना की जिसमें उत्पाद खरीदने वालों का बजट हिलाकर रख दिया है। चुपके-चुपके आई इस महंगाई पर लोगों का ध्यान भले ही सीधे नहीं जाता है, लेकिन जेब पर बड़ा असर डाल रही हैं। दरअसल, कंपनियों ने अपने उत्पादों के रेट तो नहीं बढ़ाए लेकिन वजन और मात्रा में कमी कर दी। यू तो यह कमी सामने नजर नहीं आती है लेकिन मात्रा घटाने से जिस उत्पाद को उपभोक्ता महीने एक से दो बार खरीदता था उसे अब चार से पांच बार खरीदना पड़ रहा है। नतीजा उतने ही पैसे में ज्यादा माल की बिक्री कर कंपनियां दोनों तरफ से पैसा बटोर रही हैं। इसका खामियाजा आमजन भुगतने को मजबूर है।
माल घटने से का असर पड़ता है आमजन की जेब पर
रोज इस्तेमाल करने वाले शैंपू हों या फिर साबुन, वाशिंग पाउडर, क्रीम हो या मंजन तेल समेत अन्य चीजें। विभिन्न कॉस्मेटिक्स प्रोडक्ट और दालमोठ बिस्किट जैसे तमाम ऐसे उत्पाद हैं जो लोग रोज खरीदते हैं। छोटा हो या मध्यम वर्गीय एवं बडे़ उपभोक्ता सभी इन चीजों को अपनी दिनचर्या में शामिल कर चुके हैं। ऐसे में माल की मात्रा घटाने का असर छोटे और मध्यम वर्गीय ग्राहक पर बहुत ज्यादा पड़ता है।
रेट नहीं बढ़ाए पर मात्रा घटाने वाले कुछ उदाहरण
उदाहरण के तौर पर दो साल पहले वाशिंग पाउडर की बात करते हैं। पहले कपड़ा धोने वाला यह उत्पाद एक किलो मिलता था अब इसकी मात्रा कंपनियों ने घटाकर 750 ग्राम कर दी है। कीमत में फर्क नहीं पड़ा है। इसी तरह विभिन्न ब्रांड के शैंपू का वजन कम कर दिया गया है। 100 मिलीलीटर की पैकिंग वाले शैंपू की बोतल 80 एमएल कर दी गई है। मंजन, पेस्ट, क्रीम समेत ज्यादा खपत वाले इन प्रोडक्ट की कीमतों में मामूली असर भी आया है। नहाने वाले साबुन की टिकिया की पैकिंग 100 ग्राम की थी जो अब घटते-घटते 80, 60 और फिर 50 ग्राम की रह गई है। इसी तरह दालमोठ की पैकिंग का भी वजन घटाया गया है। पारले-जी सरीखे आमजन को जोड़ने वाले इस बिस्किट की पैकिंग में भी वजन घटा दिया गया है। कीमत वही है लेकिन वजन कम। इसके अलावा ब्रेड, बिस्किट, बटर, समेत तमाम ऐसे आइटम हैं जो रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं। इसी तरह पाउच में बिकने वाले तेल हों या फिर क्रीम सभी का वजन कम हो गया है।
कॉस्मेटिक्स की रेंज में हर साल हो जाती है 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि
बाल रंगने के प्रति लोग अब ज्यादा गंभीर हो गए हैं। ऐसे में बाल रंगने वाले विभिन्न कंपनियों के 35 से 42 रुपये में बिकने वाले आइटम 45 से ऊपर निकल गए हैं। व्यापारी कहते हैं कि हर साल 15 से 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कंपनियां बढ़ा देती हैं। कोल्ड क्रीम और बॉडी लोशन जैसे उत्पादों के रेट में करीब 12 फीसद का अंतर रेट बढ़ने की वजह से हुआ है।
थोक कारोबारी और डीलर विनोद अग्रवाल बताते हैं कि मौजूदा दौर में कंपनियों की मनमानी जारी है। दांव ऐसा चला जिससे आमजन ठगा जा रहा है। रेट कम नहीं किया माल घटा दिया। इससे उस माल की बिक्री बढ़ गई। ज्यादातर उत्पादों की मात्रा घटा दी गई है। छोटे पाउच और छोटी पैकिंग उन्हें अब कई बार खरीदनी पड़ रही है। एफएमसीजी उत्पादों में कंपनियों की मनमानी है।
विनोद अग्रवाल, अध्यक्ष उप्र कॉस्मेटिक्स एसोसिएशन
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