अंडरवर्ल्ड डॉन बबलू श्रीवास्तव की रिहाई पर SC का निर्देश : दो महीने में जल्द निर्णय ले यूपी सरकार
नई दिल्ली, अमृत विचार : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने प्रदेश सरकार (UP Government ) को 1993 के हत्या मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे माफिया ओमप्रकाश श्रीवास्तव उर्फ बबलू श्रीवास्तव की समय पूर्व रिहाई पर दो महीने के भीतर विचार करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति नोंगमेइकापम कोटिश्वर सिंह की पीठ ने राज्य सरकार को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 की धारा 473 की उप-धारा (1) के तहत छूट देने का अनुरोध करने वाली याचिका पर विचार करने का निर्देश दिया।
अंडरवर्ल्ड डॉन बबलू श्रीवास्तव ने संयुक्त प्रांत कैदी रिहाई परिवीक्षा अधिनियम, 1938 की धारा 2 के तहत राहत मांगी थी, लेकिन याचिका खारिज कर दी गई। शीर्ष अदालत ने कहा कि 1938 अधिनियम की धारा 2 सीआरपीसी की धारा 432 या बीएनएसएस की धारा 473 से अधिक कठोर है। शीर्ष अदालत ने कहा कि जब तक राज्य सरकार यह निष्कर्ष दर्ज नहीं कर लेती कि वह किसी दोषी के पूर्ववृत्त या जेल में उसके आचरण से संतुष्ट है और रिहाई के बाद उसके अपराध से दूर रहने तथा शांतिपूर्ण जीवन जीने की संभावना है, तब तक दोषी को रिहा नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने कहा, ‘‘जहां तक 1938 अधिनियम की धारा 2 के तहत राहत से इनकार करने का सवाल है, बीएनएसएस की धारा 473 का दायरा 1938 अधिनियम की धारा 2 से पूरी तरह से अलग है।’’ शीर्ष अदालत ने 8 जनवरी को एक आदेश में राज्य सरकार को बीएनएसएस की धारा 473 की उप-धारा (1) के तहत छूट देने के लिए याचिकाकर्ता के मामले पर ‘‘जल्द से जल्द’’ विचार करने का निर्देश दिया। आदेश में कहा गया, ‘‘चूंकि याचिकाकर्ता 28 साल से अधिक की वास्तविक सजा काट चुका है, इसलिए याचिकाकर्ता के मामले पर विचार किया जाए और अधिकतम दो महीने की अवधि के भीतर उचित आदेश पारित किया जाए।’’
बरेली केंद्रीय कारागार में बंद श्रीवास्तव ने समय-पूर्व रिहाई के निर्देश के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया। वह कभी कथित तौर पर माफिया सरगना दाऊद इब्राहिम का सहयोगी था और बाद में उसका दुश्मन बन गया। जांच एजेंसियों ने हत्या और अपहरण सहित 42 मामलों में वांछित श्रीवास्तव को सिंगापुर में गिरफ्तार किया था और 1995 में उसे भारत प्रत्यर्पित किया गया था। उसे 1993 में इलाहाबाद में सीमाशुल्क अधिकारी एल डी अरोड़ा की हत्या के मामले में कानपुर की एक विशेष टाडा अदालत ने 30 सितंबर 2008 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपी गई थी। शुरु में, उसे नैनी केंद्रीय कारागार में रखा गया, और फिर 11 जून, 1999 को बरेली केंद्रीय कारागार में स्थानांतरित कर दिया गया। श्रीवास्तव ने तर्क दिया कि वह 26 साल से अधिक समय जेल में बिता चुका है और जेल में उसका आचरण अच्छा रहा है, इसलिए वह राज्य की नीति के अनुसार समय-पूर्व रिहाई का हकदार है।
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