Kanpur: 'धार्मिक चित्र साजिश के तहत बनाए जाते'...चित्रकार अशोक भौमिक का बयान छोड़ गया कई सवाल

Kanpur: 'धार्मिक चित्र साजिश के तहत बनाए जाते'...चित्रकार अशोक भौमिक का बयान छोड़ गया कई सवाल

विशेष संवाददाता, कानपुर। कमलानगर स्थित डॉ.गौरहरि सिंहानिया इंस्टीट्यूट में कानपुर लिटरेचर फेस्टिवल के समापन पर चित्रकार और चित्रकला समीक्षक अशोक भौमिक का वक्तव्य ‘धार्मिक चित्र दुनिया भर में साजिश के तहत बनाए जाते हैं’ चर्चा के लिए काफी कुछ छोड़ गया। 

पहले सत्र ओपेन माइक का संयोजन अनीता मिश्रा ने किया। दूसरे सत्र में अजय पांडे और उनकी पुस्तकों पर परिचर्चा हुई। तीसरा सत्र भारतीय चित्रकला के सच पर था, इसमें चित्रकार अशोक भौमिक ने दुनिया में धार्मिक चित्रों को उकेरे जाने को साजिश बताया। उन्होंने कहा कि युद्ध चित्र कालांतर में युद्ध विरोधी चित्र दिखने लगते हैं। भारतीय चित्रकला का मूल स्वरूप बीसवीं सदी की शुरुआत तक धार्मिक कथाओं या राजा-बादशाहों की जीवनियों के चित्रण तक सीमित था। 

कला के नाम पर लोक कला और त्योहारों, उत्सवों में अल्पना, रंगोली आदि ही थे। कोरोना लॉकडाउन में मेहनतकश जनता ही चित्रों में आती रही। पांचवे सत्र में चिकित्सा सचिव पार्थसारथी सेन शर्मा के उपन्यास और यात्रावृतांत से जुड़ी पुस्तकों पर चर्चा हुई। डॉ.आलोक वाजपेयी की पुस्तक कृष्ण वासुदेव और लिटिल डेथ, गॉड-बायोलॉजी टू माइथोलॉजी तथा श्याम बेनेगलल पर अरुण तिवारी की पुस्तक मेस्ट्रो-ट्रिब्यूट टू श्याम बेनेगल एट 90 का लोकार्पण हुआ। सातवें सत्र में मशहूर गीतकार आलोक श्रीवास्तव ने अपनी किताबों की रचनाओं का काव्यपाठ किया। 

‘बड़ा भांड़ तो बड़ा भांड़’ छाप छोड़ गया 

अंतिम सत्र में लोक कथाकार विजयदान देथा 'बिज्जी' की कहानी रिजक की मर्यादा पर आधारित नाटक ‘बड़ा भांड़ तो बड़ा भांड़’ का मंचन किया गया। इसके दृश्य काफी कसे हुए थे। मंचन एनएसडी के कलाकारों ने किया। प्रकाश और संगीत व्यवस्था प्रभावी रही। शंकर भांड बने अजय कुमार का सहज अभिनय और सुरीले गले ने नाटक में जान डाल दी।

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