Prayagraj News : निष्पादित नीलामी की शर्तों को पुनः लिखना कोर्ट के क्षेत्राधिकार में नहीं
अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक संपत्ति की नीलामी के बाद भुगतान में देरी से संबंधित एक मामले में कहा कि जहां बोली लगाने वाले को बोली लगाने से पहले संपत्ति का निरीक्षण करने का अवसर मिला था और नीलामी 'जहां है, जैसी है और जो कुछ भी है' के सिद्धांत पर होनी थी , तो वे ऐसी बोली के बाद संपत्ति में बाधाओं का पता चलने पर परिणामों पर सवाल नहीं उठा सकते।
कोर्ट ने इसी न्यायालय के एक अन्य फैसले का हवाला देते हुए 'जैसा है जहां है और जो कुछ भी है' के अर्थ की व्याख्या की और बताया कि यह सिद्धांत खरीदार पर यह दायित्व डालता है कि वह अनुबंध करने से पहले संपत्ति का आवश्यक निरीक्षण करे। यदि खरीदार ऐसा निरीक्षण करने में विफल रहता है, तो वह बाद में संपत्ति में दोषों की पहचान होने पर अनुबंध को रद्द करने या अनुबंध के तहत क्षतिपूर्ति का दावा नहीं कर सकता है। उक्त आदेश मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने श्रीमती जयश्री कैलाश वाणी की याचिका खारिज करते हुए पारित किया।मामले के अनुसार अपीलकर्ता एक कंपनी के परिसमापन के बाद नीलामी के लिए रखी गई भूमि खरीदना चाहता था।
उसने सबसे अधिक राशि की बोली लगाई और कंपनी न्यायालय ने बोली स्वीकार कर ली और दिनांक 26.07.2023 को एक आदेश पारित किया, जिसमें अपीलकर्ता को उक्त आदेश के 60 दिनों के भीतर आवश्यक राशि जमा करने का निर्देश दिया गया। पैसे जमा करने के लिए अतिरिक्त समय की मांग करते हुए अपीलकर्ता ने समय विस्तार आवेदन दाखिल किया, जिसे स्वीकार कर लिया गया। हालाँकि दी गई समय सीमा में भुगतान करने में विफल रहने पर अपीलकर्ता ने दूसरा समय विस्तार आवेदन दाखिल किया, जिसे अस्वीकार कर दिया गया, जिससे व्यथित होकर उसने वर्तमान अपील दाखिल की।अपीलकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि अस्वस्थता के कारण अपीलकर्ता निर्धारित निरीक्षण दिवसों यानी 02.01.2023 और 03.01.2023 को संपत्ति का दौरा करने में असमर्थ था।
इसके बाद जब उसने अंततः 18.11.2023 को निरीक्षण किया तो पाया कि भूमि पर कई निर्माण थे, जिनका नीलामी से पहले खुलासा नहीं किया गया था। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि ई-नोटिस में सभी तथ्यों की जानकारी का खुलासा करना आवश्यक था और महत्वपूर्ण तथ्यों का खुलासा न करने के कारण उसके साथ धोखाधड़ी की गई थी। यह प्रस्तुत किया गया कि वह भूमि पर अवरोधों को हटाने के बाद शेष राशि का भुगतान करेगा। तथ्यों पर विचार करते हुए कोर्ट ने माना कि अपीलकर्ता की निष्क्रियता या सुस्ती के कारण विपक्षी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, चूंकि ई-नीलामी नोटिस में संपत्ति के निरीक्षण की तारीख दी गई थी, इसलिए अपीलकर्ता को इसमें भाग लेना था और फिर बोली में भाग लेना था।
इसके अलावा ई-नीलामी “जैसा है और जो भी है” के आधार पर होनी थी और इस प्रकार एक बार अपीलकर्ता ने अपनी बोली लगा दी, तो उसके लिए कार्यवाही पर सवाल उठाना खुला नहीं था। इसके अलावा अपीलकर्ता द्वारा संपत्ति से अवरोधों को हटाने की शर्त पर भुगतान के तर्क को कोर्ट ने अनुमति नहीं दी, क्योंकि पक्षों के बीच निष्पादित नीलामी की शर्तों को पुनः लिखना न्यायालय की शक्तियों के दायरे में नहीं आता।
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