सालों की रिसर्च ने दिखाई इंसेक्ट्स की दुनिया, 5वां इंडियन सोसाइटी ऑफ इवोल्यूशनरी बायोलॉजिस्ट सम्मेलन 

सालों की रिसर्च ने दिखाई इंसेक्ट्स की दुनिया, 5वां इंडियन सोसाइटी ऑफ इवोल्यूशनरी बायोलॉजिस्ट सम्मेलन 

लखनऊ, अमृत विचारः लखनऊ विश्वविद्यालय में भारतीय विकासवादी जीवविज्ञानी समाज (Indian Society of Evolutionary Biologists) के 5वें वार्षिक सम्मेलन की गुरूवार से शुरूआत हो गई है। इस सम्मेलन में भारत के कोने-कोने से लगभग 200 प्रतिभागी आए हैं। पहले दिन कुल 13 व्याख्यान हुए, जिनमें 2 पूर्ण व्याख्यान, 5 आमंत्रित व्याख्यान और 6 मौखिक प्रस्तुतियां शामिल थीं। प्लेनरी व्याख्यान प्रो. टॉम ट्रेगेंज़ा, यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर, यू.के. और प्रो. एच.ए. रंगनाथ, यूनिवर्सिटी ऑफ मैसूर और सेंटर फॉर ह्यूमन जेनेटिक्स, बैंगलोर के थे। 

प्रो. टॉम ट्रेगेंजा ने आम चहकने वाले झींगुर के बारे में कई सारी ऐसी बाते बताई जो आम लोगों ने सोची भी नहीं होंगी। उन्होंने झींगुरों के एक समूह पर 20 वर्षों के अपने डेटा पर चर्चा की। उन्होंने दिखाया कि किसी भी जीव की संरचना और व्यवहार में परिवर्तन को समझने के लिए बड़े डेटा सेट की आवश्यकता होती है। उन्होंने यह भी चर्चा की कि व्यवहार का अध्ययन हमें जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन और प्रतिक्रियाओं को समझने में कैसे मदद कर सकता है। 

आईआईएसईआर कोलकाता के डॉ. अनिंदिता भद्रा ने आवारा कुत्तों के परिवारों और उनके आपस में सहयोग करने के तरीके के बारे में बात की। उन्होंने इन संबंधों को आकार देने में मानवीय अंतः क्रियाओं के प्रभाव के बारे में बात की। लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राणि विज्ञान विभाग के डॉ. अमित त्रिपाठी ने मोनोजीनियन नामक मछली परजीवी कृमियों पर अपना डेटा प्रस्तुत किया। उन्होंने दिखाया कि कैसे ये विशेष कृमि दुनिया भर में फैल गए और विकसित हुए। उन्होंने यह भी चर्चा की कि ये कृमि मछली उद्योग के लिए कितना गंभीर खतरा हैं।

5वां इंडियन सोसाइटी ऑफ इवोल्यूशनरी बायोलॉजिस्ट सम्मेलन

नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज, बैंगलोर के डॉ. कृष्णमेघ कुंटे ने सुंदर कॉमन मॉर्मन तितली के बारे में बताया। साथ ही बताया कि कैसे इस तितली में दुर्लभ रूप विकसित होते हैं। डॉ. कुंटे तितलियों के विश्व प्रसिद्ध विशेषज्ञ हैं और भारत की तितलियों पर एक बड़ी नागरिक वैज्ञानिक परियोजना चलाते हैं, जिसका विवरण www.ifoundbutterflies.org वेबसाइट पर पाया जा सकता है।

आईआईएसईआर मोहाली के डॉ. एनजी प्रसाद ने बताया कि कैसे माता-पिता का रोगजनकों या संक्रामक सूक्ष्म जीवों के संपर्क में आना संतानों में प्रतिरक्षा कार्य को बेहतर बनाता है, लेकिन यह प्रभावी रूप से पोते-पोतियों में नहीं जाता। प्रतिरक्षा कार्य की आनुवंशिकता को समझने में उनकी खोज महत्वपूर्ण है। डॉ. यशराज चव्हाण ने चर्चा की कि कैसे बहुकोशिकीय जीव एककोशिकीय जीवों से विकसित हुए होंगे।

अन्य युवा शोध विद्वान अभिषेक नायर (फल मक्खियों में सूखे के संबंध में क्यूटिकल हाइड्रोकार्बन), बोधिसत्व नंदी (पार्थेनियम बीटल में संभोग रणनीति), देबर्पिता दास (प्रतिस्पर्धी नरों में क्रिकेट गीत), शुभा गोविंदराजन (कीट आटा बीटल 'घुन' उम्र या घनत्व से कैसे प्रभावित होते हैं), बनजा (कवकनाशी पानी के पिस्सू के अस्तित्व को कैसे प्रभावित करता है), और भव्या (तितली पंख के रंग का विकास) ने बात की। सभी वार्ता के बाद पोस्टर सत्र हुआ जिसमें 59 पोस्टर शोध विद्वानों द्वारा प्रदर्शित किए गए और उनका मूल्यांकन किया गया। आईएसईबी युवा मस्तिष्कों को प्रोत्साहित करने पर जोर देता है, जिसमें वरिष्ठ संकाय मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं, और ऐसी जीवंत प्रेरित युवा पीढ़ी को देखना बहुत उत्साहजनक है, ऐसा प्रोफेसर गीतांजलि मिश्रा, ISEB5 के संयोजक ने कहा।

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