'KGMU में संसाधनों की कमी नहीं होने दी जाएगी', नैमीकॉन कांफ्रेंस में बोले उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक

'KGMU में संसाधनों की कमी नहीं होने दी जाएगी', नैमीकॉन कांफ्रेंस में बोले उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक
कार्यक्रम में मौजूद उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद, डीन डॉ. अमिता जैन, प्रति कुलपति डॉ. अपजीत कौर व अन्य

लखनऊ, अमृत विचार: किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) में मरीजों को बेहतर इलाज उपलब्ध कराने की दिशा में लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। नई तकनीक व आधुनिक इलाज को केजीएमयू में लागू किया जा रहा है। इसके लिए बजट की कमी नहीं होने दी जायेगी। यह बातें शनिवार को उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने केजीएमयू इमरजेंसी मेडिसिन विभाग की ओर से आयोजित नैमीकॉन कान्फ्रेंस में कही।
अटल बिहारी वाजपेई सांइटिफिक कन्वेंशन सेंटर में दो दिवसीय नैमीकॉन कान्फ्रेंस शुरू हुई।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मौजूद उपमुख्यमंत्री ने कहा कि केजीएमयू में संसाधनों की कमी नहीं होने देंगे। केजीएमयू के ज्यादातर प्रस्तावों को सरकार पूरा कर रही है। हाल ही में केजीएमयू के विस्तार के लिए सरकार ने भूमि मुहैया कराई है। यह भूमि केजीएमयू को पूरी तरह से निशुल्क दी गई है। भविष्य में भी केजीएमयू की योजनाएं बजट की कमी के कारण रूकेंगी नहीं। उन्होंने कहा कि केजीएमयू में आधुनिक सुविधाएं दी जा रही हैं। रोबोटिक सर्जरी जल्द शुरु होगी।

उन्होंने संस्थान प्रशासन से कहा कि किडनी व लिवर ट्रांसप्लांट नियमित रूप से करें। जल्द से जल्द बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट बनाई जाए। इस मौके पर केजीएमयू कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद, डीन डॉ. अमिता जैन, प्रति कुलपति डॉ. अपजीत कौर, इमरजेंसी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. हैदर अब्बास, डॉ. प्रेमराज समेत अन्य डॉक्टर मौजूद रहे।

घायल को करवट के बल लिटाएं, पानी पिलाने से बचें 
कांफ्रेंस को सम्बोधित कर रहे केजीएमयू ट्रॉमा सेंटर के सीएमएस डॉ. प्रेमराज ने कहा कि सड़क हादसे के शिकार मरीज को पानी नहीं पिलाना चाहिए। बल्कि करवट के बल लिटाना चाहिए। मरीज के सांस लेने की प्रक्रिया की निगरानी करनी चाहिए। साफ कपड़े से मुंह साफ करना चाहिए। ताकि लार, खून व दूसरी गंदगी सांस की नली में न फंसे। ऐसा कर 40 से 50 प्रतिशत घायलों को बचाया जा सकता है। केजीएमयू इमजरेंसी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. हैदर अब्बास ने कहा कि हर साल हजार लोगों की मृत्यु सर्प दंश से हो जाती है। लोग समय पर अस्पताल नहीं आ पाते हैं। जो आते हैं वह घाव पर चीरा-टांका लगाकर आते हैं। रस्सी या कपड़े आदि से प्रभावित हिस्से को बांध लेते हैं। यह मरीज की सेहत के लिए घातक है। इससे मरीज की जान का जोखिम बढ़ जाता है। जहर के फैलने की आशंका बढ़ जाती है।

जहरखुरानी के शिकार मरीज को उल्टी कराने से जा सकती है जान 
एनस्थीसिया विभाग के डॉ. अहसान सिद्दीकी ने कहा कि देश में हर साल करीब 50 हजार लोग जहरखुरानी की वजह से मर जाते हैं। जहरखुरानी के शिकार मरीज की जिंदगी के लिए शुरूआत का पहला घंटा अहम होता है। ज्यादातर मामलों में परिवारीजन व आस-पास के लोग मरीज को उल्टी कराने में कीमती समय बरबाद कर देते हैं। समय पर इलाज से जहरखुरानी के शिकार मरीज की जान बचाई जा सकती है। उलटी कराने से सांस नाली अवरुद्ध होने का खतरा रहता है।

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