बाराबंकी: दर्जा श्रमिक, काम संभाल रहे यूनिट इंचार्ज का, दबी जुबान में दर्द बयां करते हैं श्रमिक

तैनाती पुराने गोदाम की, हाजिरी नए गोदाम में

बाराबंकी: दर्जा श्रमिक, काम संभाल रहे यूनिट इंचार्ज का, दबी जुबान में दर्द बयां करते हैं श्रमिक

योगेश शर्मा/बाराबंकी, अमृत विचार। विभागीय मुखिया या फिर वरिष्ठ अधिकारी का खास बनने की होड़ लगभग सभी विभागों में रहती है। यह कोई नई बात नहीं पर भारतीय खाद्य निगम की मामला थोड़ा अलग हटकर है। यहां पर प्रभारी बनने का शौक इस कदर हावी है कि इस चाह में पुराना गोदाम छोड़कर कई श्रमिक नए गोदाम में यूनिट इंचार्ज बनकर बैठे हैं।

नियम अनुसार श्रमिकों की जगह पुराने गोदाम में ही है क्योंकि नया गोदाम ठेकेदारी के दायरे में जा चुका है पर नियम कायदे सब किनारे हैं। खास बात यह कि यहां पर जो भी श्रमिक इस तानाशाही का विरोध करने का साहस करता है, उसकी ड्यूटी घास काटने में लगा दी जाती है। दबी जुबान में श्रमिक एक दूसरे से अपना रोना रो रहे हैं। 

अगर कहा जाए कि देवा रोड स्थित भारतीय खाद्य निगम में तानाशाही चल रही है तो गलत न होगा। यहां पर विरोध करने की भी सजा तय है। भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार निगम के पास देवा रोड पर ही दो गोदाम हैं, पुराने गोदाम में करीब 31 श्रमिक कार्यरत हैं, जो विभागीय हैं और इन सभी की ड्यूटी किसी न किसी काम में लगी हुई है। जबकि नया गोदाम ज्यादा दूरी पर नहीं लेकिन यहां पर ठेकेदारी व्यवस्था लागू है यानी ठेकेदार अपने दिहाड़ी पर श्रमिक उपलब्ध करा कर देगा।

इस लिहाज से तो सबकुछ ठीक कहा जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है पुराने गोदाम के तीन श्रमिक जिनके नाम अशोक यादव, अर्जुन व महेन्द्र यादव हैं, नियम विरूद्ध नए गोदाम में अरसे से रोज देखे जा रहे। इनको बाकायदा यूनिट इंचार्ज बनाया गया है। सूत्र बताते हैं कि अशोक यादव यूनिट संख्या 4,7 व 9 पर अर्जुन 3,10,11 व 12 पर तथा महेन्द्र यादव यूनिट नंबर एक पर कार्यरत हैं। सीधी बात यह कि यहां के अफसरों की इन सभी पर नजरें इनायत हैं और श्रमिक होते हुए भी इनसे यूनिट इंचार्ज का काम लिया जा रहा है।

ऐसा नहीं कि यह सबकुछ अधिकारियों के दबाव में हो रहा, इस काम में इन श्रमिकों की भी इच्छा शामिल है। वजह चाहे जो भी हो फायदा चाहे जिसको हो रहा हो पर एफसीआई में इस समय यही खेल चल रहा है। सूत्रों का यह भी दावा है कि अगर कोई श्रमिक इस तानाशाही का विरोध करता है या नहीं भी करे तो उनकी ड्यूटी घास काटने में लगा दी जाती है, जबकि यह काम सिविल इंजीनियर की देख रेख में होना चाहिए। दर्जा श्रमिक का होने के बाद भी यह भेदभाव क्यों किया जा रहा, इसका जवाब यहां तैनात अफसर ही बेहतर दे सकते हैं।

इस बारे में भारतीय खाद्य निगम में तैनात डिपो प्रबंधक राजेश से बात की गई तो उन्होने जवाब दिया कि उनके संज्ञान में यह बात नहीं है, जानकारी करके बता रहे हैं, इसके बाद उनके मोबाइल नंबर पर दो बार फिर काल की गई पर उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला।

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