अंगदान के लिए जागरूकता
देश में अंगों के प्रत्यारोपण से अनेक जिंदगियों को बचाया जा रहा है। इसलिए अंगदान का महत्व बहुत बढ़ गया है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में कहा कि मृत्यु के बाद अंगदान करने वाला एक व्यक्ति आठ ऐसे रोगियों को नया जीवन दे सकता है जो अलग-अलग प्रकार की अंग विफलताओं से पीड़ित हैं। वास्तव में अंगदान को हमें जीवन जीने का तरीका बनाना होगा। ताकि हम ऐसे मरीजों को नया जीवन दे सकें जिनके किन्हीं अंगों ने काम करना बंद कर दिया है, लेकिन भारत में अंगदान करने वालों की संख्या बहुत कम है।
प्रति दस लाख जनसंख्या पर अंगदान की दर बहुत ही निराशाजनक 0.65 है जबकि अन्य देशों में यह दर प्रति दस लाख आबादी पर 30 या उससे ज्यादा है। पारिवारिक आशंकाएं, भय, अंगों के सही इस्तेमाल पर संदेह, धार्मिक और सामाजिक परंपराएं आदि कुछ ऐसे कारण है, जिनके कारण लोग अंगदान करने से बचना चाहते हैं।
गौरतलब है कि समाज को दान किया गया अंग मुफ्त मिलता है लेकिन इसके प्रत्यारोपण की लागत लाखों रुपये होती है। अंगों की अनुपलब्धता के कारण भारत में प्रतिवर्ष लगभग पांच लाख लोग मर जाते हैं। एक अध्ययन में पाया गया है कि भारत में अगर घातक दुर्घटनाओं के शिकार लोगों में से 5-10 प्रतिशत भी अंगदान का निर्णय ले लें, तो इस कमी को पूरा किया जा सकता है।
सरकार को अंगदान से जुड़े नियमों में कुछ परिवर्तन करने चाहिए। अंगदाताओं में वृद्धि के बिना बढ़ी हुई मांग से अंगों के अवैध व्यापार को बढ़ावा मिलता है।
सरकार को चाहिए कि व्यवस्था में फैली इन कमियों का दूर करने के लिए एक सार्थक योजना बनाएं। मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 में पारित किया गया था। यह मानव अंगों के निष्कासन और उसके भंडारण के लिए विभिन्न नियम प्रदान करता है। यह चिकित्सीय प्रयोजनों के लिए मानव अंगों के प्रत्यारोपण और मानव अंगों के वाणिज्यिक लेन-देन की रोकथाम को भी नियंत्रित करता है। अब केंद्र सरकार ने अंगदान के लिए डोमिसाइल प्रतिबंध को हटा दिया है।
देश के किसी भी राज्य में ऑर्गन लेने के लिए रजिस्टर किया जा सकता है और ट्रांसप्लांट कराया जा सकता है। अंगदान के बारे में गलत धारणाओं और मिथकों को दूर करना देश में अंग की कमी को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अंगदान को बढ़ाने के लिए समाज में जागरूकता की जरूरत है। इसके लिए बड़े स्तर पर अभियान चलाया जाना चाहिए।