श्रम सुधार व रोजगार सृजन

श्रम सुधार व रोजगार सृजन

भारत की आबादी में लगभग 90 प्रतिशत लोग श्रमिक वर्ग से हैं। श्रमिकों को सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, न्यूनतम मजदूरी, और रोजगार के अवसरों को बनाए रखने के लिए श्रम सुधार जरूरी हैं। देश में वर्षों से श्रम क्षेत्र में सुधारों की मांग की जाती रही है, ये मांग न सिर्फ उद्योगों की ओर से बल्कि समय-समय पर श्रमिक संगठनों की ओर से भी की जाती रही है। देश की आर्थिक प्रगति के लिए उद्योगों का विकास होना आवश्यक है, विशेषकर विनिर्माण क्षेत्र में, जो अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक श्रमिक गहन होता है। यदि श्रम कानूनों में बाजार और श्रमिकों के जरूरी हितों का ध्यान नहीं रखा जाता है तो ऐसे उद्योगों का सीमित विकास ही हो पाता है।

वास्तव में जनसांख्यिकीय लाभांश पाने व भविष्य के विकास को गति देने के लिए श्रम सुधार आवश्यक हैं। देश में व्यवसाय को सुगम बनाने तथा विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए भी श्रम सुधारों को जरूरी माना जाता है। भारत में अवस्थित बहुत से उद्योगों में श्रमिकों का वेतन भारत के अन्य प्रतिस्पर्द्धी देशों जैसे-चीन, वियतनाम, इंडोनेशिया से भी कम है, फिर भी इन देशों के निर्यात में लगातार वृद्धि हो रही है। भारत इन देशों से सबक लेकर अपने श्रम कानूनों में सुधार कर सकता है।

श्रम एवं रोजगार मंत्रालय शुक्रवार को बेंगलुरु में श्रम सुधारों और रोजगार सृजन को गति देने पर चर्चा करने के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ बेंगलुरु में क्षेत्रीय बैठक आयोजित कर रहा है। श्रम सुधारों और रोजगार सृजन को गति देने को सरकार प्रतिबद्ध है। 44 केंद्रीय कानूनों और 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को समेकित करके चार श्रम संहिताओं में शामिल किया गया है। सरकार द्वारा विस्तृत एवं विखंडित श्रम कानूनों को एक साथ पिरोने के प्रयास से लगभग 50 करोड़ श्रमिकों/कर्मचारियों के लाभान्वित होने की संभावना है।

गुणवत्तापूर्ण रोजगार सृजन और श्रम कल्याण को बढ़ावा देने में उद्योग की सुविधा के लिए भारत सरकार द्वारा किए जा रहे उपायों का स्वागत किया जाना चाहिए। इसके बावजूद अभी और प्रयास करने की आवश्यकता है, क्योंकि 2041 तक भारत में उपलब्ध कामकाजी आबादी का स्तर चरम पर पहुंच जाएगा। इतनी बड़ी आबादी के लिए रोजगार के अवसर सृजित करना आसान तो नहीं, लेकिन आसान बनाया जा सकता है। इसके लिए कुछ उपाय करने होंगे।

गौरतलब है कि फिलहाल कुल रोजगार प्रदान करने में एमएसएमई की हिस्सेदारी 62 प्रतिशत की है। अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में यह आंकड़ा 77 प्रतिशत तक है। 2023-24 में 8.2 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि का दावा करने के बावजूद, भारत 8 प्रतिशत (सीएमआईई) की चिंताजनक बेरोजगारी दर से जूझ रहा है। यह विरोधाभास लगातार भयावह होता जा रहा है। यानी मजबूत विकास के बावजूद नौकरियों की स्थिति चिंताजनक है। सरकार को युद्ध स्तर पर इससे निपटना चाहिए।